समझ
समझ अपने नही आता समझ को कौन समझायें।
समझते खुद नही जो वो कैसे किसको समझायें।।
समझना भी ज़रूरी है मगर किसके यहां जाये।
समझ मे यह नही आता बिना समझे ही समझायें।
समझ जाते अगर इतना तो फिर बाते समझ की क्या?
समझ ही अपनी छोटी सी ,इसे बस यूँ ही समझायें।
समझ के फेर में पड़कर ,समझ को भी भुला ना दें।
यही बस सोचकर समझे ,समझ इतना ही समझायें।
समझ होती अगर आसां ,तो कोई भी समझ जाता।
समझ झँजंट ही भारी है , समझ कैसे इसे पायें।
समझ को जब समझ लेते तो फिर वारे ही न्यारे थे।
समझ फिर क्यो नही आई , समझ को यही समझायें।
समझ अब तो गए होंगे ,समझ होती है क्या समझे।
समझ का सार इतना ही ,इसे सबको ही समझायें।
कलम घिसाई