समझदारी ने दिया धोखा*
समझदारी ने दिया धोखा
जिसको मैंने जीवनपथ का गुरु मान, आधार बनाया।
जिसकी शिक्षा और मार्गदर्शन ने था; नया रास्ता दिखलाया।
जिसकी लग्न व ईमानदारी को था; मैंने अपनाया।
जिसकी दृढ इच्छा शक्ति , स्वाभिमान का गुण; था मुझको बड़ा भाया।
भावनाओं में बहकर जिसको कभी था; मैंने दिल से अपनाया।
जिस्मों को छूआ नहीं ; तन कभी उसका हुआ नहीं।
क्योंकि यह आखों से जतलाया जाता हैं; सच्चे प्यार पर कहां हक दिखलाया जाता है।
मन ही मन था उसको निहारा,
मगर जब उसकी नजरों ने किया किसी ओर को इशारा।
मन से उसने था हमको तिस्कारा , हमने तब भी खुद ही खुद को दिया था सहारा।
आज मेरे दिल से निकली ये बात; उसके दिल तक जाएगी।
दूरियां भी यदि हैं तो ये मेरे आहें हवाओं संग बह; उसको झिंजोर कर आएगी।
मेरी यह कविता उसके मानस पटल पर एक ऐसी छाप छोड़ आएगी।
उसको कुछ रातों तक नींद भी न आएगी।
उनके कर्मों के रोड़े, जब मेरे प्रारब्ध में बाधा बन जाएंगे।
जब आपनी नाइंसाफी की सफाई वो दे नहीं पाएंगे।
तब खुद की गलती पर वो आज जरूर पछतायगे।
आज वो मुझे याद करने पर मजबूर हो जाएंगे।
आज गुनाह की माफ़ी मुझसे नहीं ; खुदा से मांगने जाएंगे।
सधन्यवाद
रजनी कपूर