समंदर
समंदर की गहराई में हम कहा उतर गए ,,
इश्क की तम्मना में जमाने से भी टकराए गए ।
समंदर ने मुझसे कहा कि आओ
मेरी गहराई में उतरो
और सीप ,शंख से मुझे आवाज सुनाओ ।
सुनकर में अपनी लहरों को
चटटानो से टकराकर कल कल की ध्वनि से संगीत का मजीरा बजाऊँगा ।
वो दरिया भी कतरा कतरा कर
मुझमें ही समा जाएगा
महीन कण कण के बालू रेत भी मेरा सहरा बन जाएगा
हर गली ,नदियों का पानी भी तेरी शंख की ध्वनि के असर से
मुझमें समा जाएगा
जैसे कृष्ण की वंशी से गाये दोड़ कर उनके चरणो में गोधुली वेला के साथ आ जाती है।
साफ नील गगन की परछाई
मेरे दर्पण में ही निहारा जाते है ।
ज्वार, भाटे दो भाई मेरे उपर से ही उछल मस्ती कर जाते है ।
सूर्य अस्त उदय का रुतबा भी
मेरे किनारे से देखा जाते है
दोस्त अहबाब से लेने न सहारे जाना
दिल जो घबराए समंदर के किनारे आ जाते है ।
वो बदन भी बरसात की रात में बिजली की ध्वनि से मचल उठता है
तब समंदर भी छलकती आँखों से कटते पत्थर में रो उठता है।।
इसलिए प्रवीण आज के दिन से ही जीव जंतु और गोरया प्राणी को बचाने की और जल बचाने की पहल करके जाना ।
मेरे ही अंदर इश्क की मोह्हबत में संगीत का शंख बजा जाना ।
✍प्रवीण शर्मा ताल
टी एल एम् ग्रुप संचालक