समंदर होना
अज़ाब ने सिखाया है मुझे मुर्दों का बिस्तर होना
तुम्हें आसान लगता है क्या मिरा यूँ समंदर होना
वो पी गए वहाँ ज़हर कायनात के हिफ़ाज़त में और
यहाँ भाँग धतुरा गटक कर चाहते है सब शंकर होना
आता है आ जाने दो अब गर्दिश-ए-बख़्त को भी यहाँ
हालातों से उलझ मैं समझ गया हूँ हँस कर ख़ंजर होना
आहिस्ता आहिस्ता पास आ उसके जब चुमा जबीं तो
इल्म हुआ मुझे सबसे खूबसूरत है इश्क का अख़्तर होना
तमाम असफलता को आँख दिखा जब हो बदन हवा में
तो सबसे जरूरी है मन में अहम ओ वहम का कमतर होना
लिखना चाहा अशआर पैग़ंबर पे तो पन्ने जल गए बिखर गए
शायद मंज़ूर है उस खुदा को भी मिरा इस जमाने क़ाफ़िर होना
छूट गया युहीं बदन ले कर हुस्न के बाजारों में तन्हां बेज़ार मै
यार मिरे किस्मत में लिखा ही नहीं जान जिगर दिलबर होना
@कुनु