समंदर में हुआ कुछ हादसा है
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समन्दर में हुआ कुछ हादसा है ।
तभी अंदाज लहरों का जुदा है ।।
दिखावे की ज़रूरत किस लिये हो
हुनर तो ख़ुद- ब – ख़ुद ही बोलता है |
जो कल महफ़िल में तनहा कर गया था ;
सुना है आज तक वो रो रहा है ।।
या
जो कल मुझको अकेला कर गया था ;
सुना है आज तक वो रो रहा है ।।
हमारी गलतियाँ खूबी हमारी ;
ये आईना सभी कुछ जानता है ।
अभी तक लड़ रहा हूँ मैं स्वयं से ;
खुदा किस्मत में ये क्या लिख दिया है ।
मेरे अंदर हमेशा से मुसल्सल ;
कोई तनहा समन्दर चीखता है ।
मैं जब बिलकुल अकेला चल रहा हूँ ;
मेरे अंदर से कोई झाँकता है ।
महज नाले ही हैं जो चीखते हैं ;
समन्दर आज भी ठहरा हुआ है ।
सभी कुछ है मगर तनहा हूँ खुद में ;
न जाने क्या है जिसको खो दिया है ।
तुझे क्या गम भला ‘अस्मित’ ;
तेरे अंदर खुदा बैठा हुआ है ।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’