तेरे तेवर की लरजिस से
बह्र–हजज़ मुसम्मन सालिम
वज्न-1222 1222 1222 1222
* ग़ज़ल*
तेरी शोख़ी में कुदरत के ये सारे राज़ पलते है।
अदा तेरी जो बदले तो नज़ारे ख़ुद बदलते है।।
इसे ज़िद या कहें हसरत गुलों ने पाल रख्खी है।
तबस्सुम देखकर तेरी चमन में फूल खिलते है।।
ज़रा दिल में उठे जज्ब़ात का तूफ़ा संभालो तुम।
ये मौज़ें सर पटकती है समंदर भी मचलते है
बहारें लौट आईं हैं फिर से इस गुलिस्तां में।
तेरे तेवर की लरजिस से ये मौसम भी बदलते है।।
बरस जाता है सावन भी बड़ी ही बेकरारी से
मेरे महबूब के आसूं जो आखों से निकलते है।।
जो देखीं सलवटें बिस्तर पे तेरे ये लगा मुझको।
तन्हा मैं ही नही हूं अब वो भी करवट बदलते है।।
तेरी हर कोशिशें हमको अब ये सीख देती है
मिलेंगीं मंजिलें उनको जो गिरकर भी सम्हलते है।।
हुआ हमराह जब से ये “अनीश” इन तेरी राहों में।
ये दुनिया रस्क़ करती है दिवाने हाथ मलते है।।
@nish shah