सभ्यता
नहीं बनाई जा सकती
कोई भी सभ्यता
ईंट और गारे से
लौहे और औजारोंं से
बनती है सभ्यता
जन जन के कर्म से
साफ सोच और
संवेदना के मर्म से
सहयोग के धर्म से।
जबकि धर्म और जाति
नहीं अब जोड़ते
भाषाओं के शब्द भी
अब प्रेम नहीं बोलते
आओ, सब मिल कर
साफ सोच और खुले भा्वों से
एक नई दुनिया बनाये
जिसमें हम सब रहें
बच्चों के लिये
बेहतर दुनिया छोड़ जाये।