सभ्यता पर दो शब्द
सुन्दर कर्मशील जीवीत जातियों के नाम ही जहाँ गालियाँ होती हैं।
कैसी कुत्सित सभ्यता है वह गालियों पर जहाँ तालियाँ होती हैं।
अथक कर्म और कार्य द्वारा जीवन के प्रवाह को जीवंत रखते हैं।
गंगा की भाँति पवित्र व्यक्तित्व भी पर कहलाती हैं नालियाँ।
किस संस्कृति पर गर्व करते हैं और किस सभ्यता का गौरव गान।
किसी ग्रंथ में नहीं है पनाह क्यों नहीं कहलाती हैं ये जालियाँ।
अतीत से आश्वस्त होने वाली वर्त्तमान पीढियोँ के षड्य़ंत्र।
कुचल डालने को सभ्यता के सहज आकार बना रहे हैं टोलियाँ।
भाषाओं ग्रंथों और व्याख्याओं की सभ्यता जिन्हें आती रही है रास।
शीर्ष पर `येन केन प्रकारेण’ आरूढ़ होकर बघारते हैं शेखियाँ।
इस सभ्यता के माथे पर मेरी बोली लगाने का कलंक है।
सभ्यता रही है कलंकित करनेवाले लगाते हैं किलकारियाँ।
चमड़े के रँगों के तथा खून की उष्णता का देकर हवाला।
ये विरोधी खेमे के पुरोधा अब भी लगाते रहे हैं तालियाँ।
ईश्वर ने सुन्दर बनाया विश्व विश्व में अत्यन्त सुन्दर मनुष्य।
किन्तु यह सुन्दर मनुष्य न बना पाया सुन्दर सोच की बालियाँ।
आभार प्रकट करें उन विद्याओं सोचों के साथ मिलकर हम।
जिस सभ्यता के सोचों ने दिया हमारे दृष्टिकोण को वैसाखियाँ।
अत्याचार के अत्यन्त कथाओं के नायक करें इन्हें आत्मसात्।
भविष्य के शतरंजीय युद्ध हेतु अब तो उछालें हाथों की मछलियाँ।
सभ्यता के विकाश की कथा में पतन के असंस्कृत पन्नों को हटाओ।
इस युग में हवा व हवाओं के गंध को अब तो न बनाये पहेलियाँ।
इस अत्यन्त प्र्रचीन सभ्यता ने एक पूरे तबके को सब कुछ नकारा है।
उपयुक्त है यह सभ्यता मात्र पूजागृह में बुदबुदाने व लगाने तालियाँ।
इस सभ्यता के ग्रंथों में मानवता गहरी है मुख पर दाग धब्बे असीम हैं।
खुद को ताख पर रख दरअसल हर ही शब्द पर करता है अठखेलियाँ।
स्त्रैण भ्रूण की हत्याओं को ठहराने वैध ओढ़ रखा है ग्रंथों के चादर।
कि स्वर्गच्युत कर देगा ब्रह्मा पुत्र के बिना कहते हैं ऐसी कहानियाँ।
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