सभी के मान की दुश्मन बनी है
ग़ज़ल
सभी के मान की दुश्मन बनी है
अना* इंसान की दुश्मन बनी है *(अना=ego)
तुम्हारी चुग़लियाँ करने की आदत
हमारे कान की दुश्मन बनी है
बनी है जड़ फ़सादों की सियासत
ये हिंदुस्तान की दुश्मन बनी है
ये मँहगाई खड़ी मुँह खोले अपना
वबा भी जान की दुश्मन बनी है
हवस दौलत की पाली है सभी ने
यही ईमान की दुश्मन बनी है
बहुत ही शोर करती याद तेरी
ये मेरे ध्यान की दुश्मन बनी है
‘अनीस’ ऐसी पड़ी पीछे ग़रीबी
मेरी पहचान की दुश्मन बनी है
– अनीस शाह अनीस ‘