सब हैं बंदी
**हम सब बंदी (चौपाई)**
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दिल भारी फैली महामारी
काम ना आए जुगत हमारी
घर में हो गए हम सब बंदी
देश में छा गई महामंदी
हाल बेहाल थम गया जहां
जाएं तो जाएं भला कहाँ
रुक गए हैं रास्ते हमारे
रह गए हम खुदा के सहारे
चारों ओर कोहराम मचा
प्रकृति यहाँ इतिहास रचा
सब हुए थे वातानुकूलित
समझ रहे थे प्रफुल्लित
कालचक्र ने पासा पलटा
इंसान छट से नीचे पलटा
मनुज ने की मानवीय भूल
सृष्टि नियमों को रहा भूल
लटका दिया सीने त्रिशूल
सारी भूलें कर ली कबूल
सुखविंद्र करे बात सयानी
प्रकृति से न करो नादानी
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)