सब स्वीकार है
आज़मा ले जिन्दगी
मुझको हर एक मोड़ पर
अब तेरी हर आज़माइश
शौक से स्वीकार है ।
अब कोई तुझसे शिकायत
करने मैं न आऊँगी ।
न ही तेरी देयता पर
प्रश्नचिन्ह मैं उठाऊँगी
तेरी रजा मेरी रजा
अब कोई न प्रतिकार है।
क्या करूं तुझसे शिकायत
दोष तेरा भी नहीं है।
पूर्व के प्रारब्ध का ही
जीवन जगत व्यवहार है।
जिन्दगी जो दे रही
सब शौक से स्वीकार है।
प्राप्त जो भी हो रहा
जीवन को अंगीकार है।
प्रभु तेरी सब देयता से
कर्म पथ पर मैं बढूंगी।
पुरस्कार सा स्वीकार लूंगी
हो जीत या कि हार है।”