“सब भाषाओं से मधुर-भाषा हिन्दी”
“सब भाषाओं से मधुर-भाषा हिन्दी”
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मधुर कर्ण-प्रिय शब्द हैं,गागर रस का मान।
प्रथम विश्व में स्थान है,सागर यश का ठान।।
सागर यश का ठान,हिंदुस्तानी शान है।
राजभाषा स्वरूप,भारत की पहचान है।
देवनागरी चिह्न,सरगम भरते शब्द सुर।
हिंदी भाषा एक,सब भाषाओं से मधुर।
झरना कविता गीत हैं,हरते मन का सार।
शहद मिला हर शब्द है,विधा हर उपहार।।
विधा हर उपहार,स्वयं रूप से लुभाती।
भर असीम उन्माद,सबके मनो को भाती।
हिंदी भाषा नाज़,सिखाए सबको करना।
पर्वत से ज्यों फूट,हृदय को हरता झरना।
बता सकें हर भाव को,भाषा हिंदी एक।
उन्नति विकास मार्ग में,यही प्रथम है टेक।।
यही प्रथम है टेक,रोज़गार भी दिलाती।
वैज्ञानिक निज रूप,शीघ्र समझ को बढ़ाती।
छायी विदेश-देश,एकता रही हर जता।
राष्ट्रगान से बात,सबको रही सुघर बता।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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