सब बदला _ फितरत नहीं
हमने देखा समझा _ जमाने में,
बदलाव कितना आया।
पढ़ाया लिखाया कितनों को ही_
फितरत कोई कोई बदल ना पाया।।
हम कहते रहे _ वह सुनता रहा।
पथ वही चुना उसने उसे जो भाया।।
समझ पाए नही हम उसको।
स्वभाव उसने ऐसा क्यों बनाया।।
फितरत बदलना लगा नामुमकिन_
स्वयं को हमने वहां से हटाया।।
वह जिसे हमने अपने जैसा चाहा।
उसी ने हम पर आरोप लगाया।।
बन क्यों नहीं जाते मेरे जैसे।
मुझे ही बदले का क्यों बीड़ा उठाया।।
अपनी प्रकृति अपना व्यवहार।
दूसरो से स्वयं का श्रेष्ठ बताया।।
सब बदला आगे भी बदलता रहेगा।
फितरत कब कौन कहां बदल पाया।।
राजेश व्यास अनुनय