सब पर सब भारी ✍️
सब है सब पर भारी
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कोई नहीं है खाली
भारी एक तथ्य न्यारी
जानते दुनियां सारी
सूरज पर मेघा भारी
ज्योति भारी तम पर
सत्य भारी असत्य पर
जन भारी सरकार पर
वफादारी वेफाई पर
सदाचार भष्टाचारी पर
ईमानदार बेईमानी पर
रात भारी है दिन पर
दीवा भारी निशा पर
विशा है भारी नीरा पर
निरा भारी है विरा पर
प्रशासन अनुशासान पर
भारी है भारी पर भारी
बात बात होती बात भारी
समझ होती नासमझी पर
ज्ञान भारी होता अज्ञान पर
बुद्धि भारी होती जड़ता पर
मन जीवों में सबसे भारी
इच्छा है सबकी न्यारी भारी
काबू है एक इच्छा पर भारी
काबू हो तो बड़ी भीड़ ना भारी
नर पर प्यारी नारी एक भारी
नारी हर एक पर है बड़ा भारी
चीड़ गई तो चेहरा होती लाली
मतवाली कालिका मनाना भारी
नारी को इतना हल्का ना समझें
इनका क्रोध दंड मर्दों पर है भारी
शब्द एक भारी अपनें में भारी
समझना है इसे जग नर नारी
जीवन में दाग होती बड़ी भारी
बचो बचाओ क्योंकि ये भारी
सदाचारी व्यवहारी प्रेमी भारी
टिका रखा जनता बडी भारी
सोच समझ विवेकसे जीयो भाई
कर्मपथ चलना भी भारी पर भारी
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कविवर :
तारकेश्वर प्रसाद तरुण
ता : – 30 -07-2023
प्रथम श्रावण एकादशी