सब को जीनी पड़ेगी ये जिन्दगी
शाख के सुखे पत्तों सी भरी है तेरी जिन्दगी
ए गरीब परिवार में जन्म लेने वाले
दुखी इंसान…
आज रोजगार तेरे लिए नहीं करता
तेरा इंतज़ार…
तेरी जिन्दगी में हर ख़ुशी तेरे लिए
नहीं बनी है…
वो तो बनी है बस तुझे सताने के लिए
दुखी इंसान …..
कौन से जन्म का बदला चूका रहा है
भटकता इस बगिया में…
तेरे लिए नहीं यह दुनिया, बस बनी
है औरो के लिए….
तार तार होती तेरी यह जिदगी बड़ी
विरानगी समेटे हुए है…
ख़ुशी तो जैसे तेरे चेहरे को छूती चली
दूर जा रही है…
खुशिओं को दूर से ही देख कर तुझे
सकून करना पड़ेगा
पल पल तिल तिल जीवन गुजारने
को तुझे जीना पड़ेगा….
विवशता के बंधन में बंधा तेरा जीवन
तेरी संगिनी को भी जीना पड़ेगा
होने वाले बच्चों को भी तेरे कर्मो के साथ
मजबूर नाता जोड़ना पड़ेगा….
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ