Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Aug 2023 · 1 min read

फर्क

फर्क

अनपढ़ थे जब लोग बाग
होता था तर्क
शिक्षित कहलाने वाले अब
करते हैं कुतर्क

अनपढ़ थे जब लोग बाग
मर्यादा की एक रेखा थी
अपने पति छोड़कर कभी
ना काहु को देखा जी

शिक्षित हुए जब लोग बाग
स्वतंत्र हुये हैं सब नार
छुट दिया है कानुन उनको
निजी जीवन का अधिकार

जब चाहे, जायें कहीं पर
करले किसी से प्यार
दोष नही,जब चाहे तलक
निज पति को दे दुत्कार

तर्क करते करते-करते अब
होने लगी है कुतर्क
बुढ़े और बच्चों में है हरदम
इसी बात का फर्क

बुढ़े जाते‌ थे बहु खोजने
खोजता था ननिहाल
खोजते खोजते खोज लेता था
लड़की का पुर्ण हाल

बदल गया है जमाना अब
बाप को मिलता अधिकार नहीं
खोज रहे है बेटा पत्नी
बेटी को भी मिला संस्कार नहीं

चलना चलाना हमको है,
मां बाप तो मर जाएंगे
वाह रे जमाना कलयुग का
बढ़ चढ़ कर कुतर्क बतायेंगे

भर देते हैं बाप के सामने
गुड़ के संग मा अर्क
प्रेम विवाह के वास्ते लोगन
करनें लगे हैं कुतर्क

बाप बेटा के महायुद्ध में
होने लगी है कुतर्क
तर्क कुतर्क मध्य अब आई
बस इसी बात का फर्क

डां विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग

Language: Hindi
2 Likes · 135 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
#कविता-
#कविता-
*प्रणय प्रभात*
तेवरी में करुणा का बीज-रूप +रमेशराज
तेवरी में करुणा का बीज-रूप +रमेशराज
कवि रमेशराज
आत्मविश्वास
आत्मविश्वास
Dipak Kumar "Girja"
समय एक जैसा किसी का और कभी भी नहीं होता।
समय एक जैसा किसी का और कभी भी नहीं होता।
पूर्वार्थ
ग़ज़ल _ मुझे मालूम उल्फत भी बढ़ी तकरार से लेकिन ।
ग़ज़ल _ मुझे मालूम उल्फत भी बढ़ी तकरार से लेकिन ।
Neelofar Khan
*तू बन जाए गर हमसफऱ*
*तू बन जाए गर हमसफऱ*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
बुद्ध पुर्णिमा
बुद्ध पुर्णिमा
Satish Srijan
नर जीवन
नर जीवन
नवीन जोशी 'नवल'
" भाषा क जटिलता "
DrLakshman Jha Parimal
दूर की कौड़ी ~
दूर की कौड़ी ~
दिनेश एल० "जैहिंद"
हाइकु- शरद पूर्णिमा
हाइकु- शरद पूर्णिमा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
इतना रोई कलम
इतना रोई कलम
Dhirendra Singh
राम से बड़ा राम का नाम
राम से बड़ा राम का नाम
Anil chobisa
🥀✍अज्ञानी की 🥀
🥀✍अज्ञानी की 🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
मैं पापी प्रभु उर अज्ञानी
मैं पापी प्रभु उर अज्ञानी
कृष्णकांत गुर्जर
*
*"बसंत पंचमी"*
Shashi kala vyas
प्यासे को
प्यासे को
Santosh Shrivastava
शराफत नहीं अच्छी
शराफत नहीं अच्छी
VINOD CHAUHAN
खुदा कि दोस्ती
खुदा कि दोस्ती
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
इंद्रदेव की बेरुखी
इंद्रदेव की बेरुखी
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
मेला लगता तो है, मेल बढ़ाने के लिए,
मेला लगता तो है, मेल बढ़ाने के लिए,
Buddha Prakash
त्याग
त्याग
Punam Pande
"पड़ाव"
Dr. Kishan tandon kranti
काश हर ख़्वाब समय के साथ पूरे होते,
काश हर ख़्वाब समय के साथ पूरे होते,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
बांदरो
बांदरो
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
दोहा
दोहा
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ/ दैनिक रिपोर्ट*
*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ/ दैनिक रिपोर्ट*
Ravi Prakash
*शर्म-हया*
*शर्म-हया*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
वातायन के खोलती,
वातायन के खोलती,
sushil sarna
ग़ज़ल/नज़्म - फितरत-ए-इंसाँ...नदियों को खाकर वो फूला नहीं समाता है
ग़ज़ल/नज़्म - फितरत-ए-इंसाँ...नदियों को खाकर वो फूला नहीं समाता है
अनिल कुमार
Loading...