Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Apr 2023 · 8 min read

*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ/ दैनिक रिपोर्ट*

संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ/ दैनिक रिपोर्ट
14 अप्रैल 2023 शुक्रवार प्रातः 10:00 बजे से 11:00 बजे तक
आज बालकांड दोहा संख्या 244 से दोहा संख्या 269 तक पाठ हुआ। श्रीमती मंजुल रानी का विशेष सहयोग रहा।
सीता स्वयंवर, शिवजी का धनुष टूटना
————————–
कथा क्रम में आज सीता जी का स्वयंवर तुलसीदास जी की प्राणवान लेखनी से जीवंत हो उठा। भारतीय संस्कृति में विवाह की पद्धति में जयमाल का एक अपना विशिष्ट स्थान है । हजारों वर्ष पूर्व भगवान राम और सीता के विवाह के अवसर पर जो जयमाल हुई थी, वह भारतीय विवाह पद्धति का एक सुंदर हिस्सा बन गई। तुलसीदास जी ने न केवल जयमाल शब्द का प्रयोग किया है ,अपितु कन्या के रूप में सीता जी द्वारा जयमाल लेकर चलने का चित्र भी साक्षात उपस्थित किया है। वह लिखते हैं:-
पानि सरोज सोह जयमाला (दोहा वर्ग संख्या 247)
अर्थात सीता जी के सरोज अर्थात कमल रूपी पानि अर्थात हाथों में जयमाला सुशोभित हो रही है ।
जयमाला हाथ में लेकर विवाह के समय चलने के दृश्य भारत में नगर-नगर और गांव-गांव में लाखों-करोड़ों व्यक्तियों ने प्रतिवर्ष न जाने कितनी बार देखे होंगे। तुलसीदास ने बहुत कुछ उन क्षणों को प्राचीनता के साथ जोड़ते हुए साक्षात उपस्थित किया है। अथवा यूं कहिए कि जो राम-सीता विवाह के समय जयमाल के क्षण थे, वह आज भी भारतीय जनजीवन में देखे जा सकते हैं। तुलसीदास जी लिखते हैं:-
चलीं संग लै सखीं सयानी। गावत गीत मनोहर बानी।। सोह नवल तनु सुंदर सारी। जगत जननि अतुलित छवि भारी ।। (दोहा वर्ग संख्या 247)
अर्थात जब सीता जी अपनी सखियों को लेकर चलीं और उन्होंने अपने शरीर पर सारी अर्थात सुंदर साड़ी पहनी हुई थी, तब उनकी सखियां मनोहर वाणी में गीत गा रही थीं। सीता जी की छवि अतुलित थी।
जब सीता जी हाथ में जयमाल लेकर चल रही थीं, तब वह संपूर्ण परिदृश्य को अपनी खुली आंखों से देख पा रही थीं। तभी तो उन्होंने मुनि विश्वामित्र और उनके समीप बैठे हुए दोनों भाइयों को देखकर मानों नेत्रों में कोई निधि अर्थात खजाना प्राप्त कर लिया। तुलसी लिखते हैं :-
मुनि समीप देखे दोउ भाई। लगे ललकि लोचन निधि पाई ।।
नारी के स्वभाव में जो संकोच होता है, उसे भी तुलसीदास जी ने अपने काव्य में चित्रित किया है । इसलिए वह रामचंद्र जी को देखती तो हैं, लेकिन फिर सकुचा जाती हैं। तुलसी लिखते हैं :-
गुरुजन लाज समाजु बड़, देखि सीय सकुचानि (दोहा संख्या 248)
सीता जी के स्वयंवर में हुआ यह कि सारे राजा शिवजी का धनुष तोड़ने के लिए एक-एक करके उठे, जोर लगाया, लेकिन धनुष टूटना तो दूर रहा वह उनसे उठ भी नहीं पाया। तब तुलसी ने अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग करते हुए लिखा :-
भूप सहस दस एकहि बारा। लगे उठावन टरइ न टारा।। (दोहा वर्ग संख्या 250)
अर्थात दस हजार राजा एक साथ मिलकर धनुष उठाने लगे, लेकिन वह नहीं हिला। यहां तात्पर्य यही है कि बहुत से राजा मिलकर नियम के विपरीत सामूहिक रूप से शिवजी का धनुष तोड़ने का प्रयत्न करने लगे।
अंत में दशरथ ने दुखी होकर कहा :-
जौ जनतेउ बिनु भट भुला भाई। तौ पनु करि होतेउॅं न हॅंसाई (दोहा वर्ग संख्या 251)
अर्थात अगर मुझे यह पता होता कि संसार भट अर्थात योद्धाओं से रहित है तो मैं ऐसी कठिन प्रतिज्ञा करके संसार में अपना उपहास नहीं कराता । यह सुनकर लक्ष्मण जी की भौंह कुटिल अर्थात टेढ़ी हो गई। उनके रदपट अर्थात होंठ फड़कने लगे और नेत्र लाल हो गए । लक्ष्मण जी ने अवध के स्वाभिमान की रक्षा के लिए रामचंद्र जी से कहा कि अगर आप कहें तो मैं धनुष को छत्रक अर्थात कुकुरमुत्ते की तरह तोड़ दूॅं :-
तोरौं छत्रक दंड जिमि, तव प्रताप बल नाथ (दोहा वर्ग संख्या 253)
अब विश्वामित्र जी ने भगवान राम को आदेश दिया और कहा कि तुम शिवजी का धनुष तोड़कर जनक के कष्ट को समाप्त करो । तुलसी लिखते हैं:-
विश्वामित्र समय शुभ जानी। बोले आति सनेहमय बानी।। उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा (दोहा वर्ग संख्या 253)
इस बिंदु पर तुलसीदास जी राम के हर्ष और विषाद से परे सदैव रहने वाले स्वभाव का चित्रण करने से नहीं चूके। विवाह के लिए शिवजी का धनुष तोड़ने हेतु जब राम उठे, तब तुलसी ने लिखा कि राम के हृदय में कोई हर्ष या विषाद नहीं था। तुलसी के शब्दों में :-
सुनि गुरु वचन चरण सिरु नावा। हरषु विषादु न कछु उर आवा।। (दोहा वर्ग संख्या 253)
वह सहज स्वभाव से ही उठकर खड़े हुए । तुलसी के शब्दों में :-
ठाढ़े भए उठि सहज सुभाऍं
तुलसी ने श्री राम के धनुष तोड़ने के लिए उठकर खड़े होने की तुलना बाल पतंग अर्थात बाल सूर्य के उदित होने से की, जिसे देखकर सब संतो के हृदय-कमल खिल उठे थे। तुलसी के शब्दों में दोहा इस प्रकार है :-
उदित उदयगिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग । विकसे संत सरोज सब, हर्षे लोचन भृंग।। (दोहा संख्या 254)
पुनः श्री राम की सहजता को तुलसी ने रेखांकित किया। वह लिखते हैं :-
सहजहिं चले सकल जग स्वामी (दोहा वर्ग संख्या 254)
तात्पर्य है कि राम सब परिस्थितियों में एक समान चेतना को लेकर चलने वाले महापुरुष हैं।
दूसरी ओर कुछ अलग ही घटनाक्रम चलने लगा। सीता जी की माताजी यह दृश्य देखकर शोकाकुल होती हुई कहने लगीं कि यह सब तमाशे चल रहे हैं :-
सखि सब कौतुक देख निहारे। दोहा वर्ग संख्या 255
उन्होंने ‘तमाशे’ शब्द को और विस्तार देते हुए कहा :-
रावन बान छुआ नहीं चापा। हारे सकल भूप करि दापा।। सो धनु राजकुॅंवर कर देहीं। बाल-मराल की मंदर लेहीं (दोहा वर्ग संख्या 255)
जिस चाप अर्थात धनुष को रावन अर्थात रावण और बाणासुर ने छुआ तक नहीं, सारे राजा दर्प अर्थात घमंड करके हार गए , वह धनुष राजकुमार के हाथ में दे दिया। समझो कि बाल-मराल अर्थात हंस का बच्चा मंदर अर्थात मंदराचल पर्वत कैसे उठा पाएगा? हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने टीका लिखकर बान का अर्थ बाणासुर करके पाठकों के लिए बोधगम्य बना दिया है। उनका कोटिश: धन्यवाद ।
उधर सीता जी मन ही मन राम से विवाह की कामना करते हुए धनुष के भार को कम करने के लिए भगवान शंकर, पार्वती तथा गणेश जी की विनती करने लगीं। उन्होंने कहा :-
बार-बार विनती सुनि मोरी। करहु चाप गुरुता अति थोरी (दोहा वर्ग संख्या 256)
उस समय देवी देवताओं से रामचंद्र जी द्वारा धनुष के तोड़ने की सफलता प्राप्त करने के लिए सीता जी जो प्रार्थना कर रही थीं, उसका बहुत सुंदर चित्रण तुलसीदास जी ने एक दोहे में किया है। तुलसीदास जी लिखते हैं:-
देखि देखि रघुवीर तन, सुर मनाव धरि धीर । भरे विलोचन प्रेम जल, पुलकावली शरीर (दोहा संख्या 257 )
अर्थात रघुवीर अथवा भगवान राम को देखकर सीता जी सुर अर्थात देवताओं को धीरज धर कर प्रसन्न कर रही हैं। उनके नेत्रों में प्रेम-जल है और शरीर पुलकित हो रहा है
यह सारे विचार केवल मन ही मन सीता जी प्रकट कर रही हैं किंतु मुख से कुछ नहीं कह रही हैं क्योंकि लाज के वशीभूत वह अपने ऊपर संयम रखे हुए हैं। तुलसी लिखते हैं :-
गिरा अलिनी मुख पंकज रोकी। प्रगट न लाज निशा अवलोकी।। (दोहा वर्ग संख्या 258)
अर्थात वाणी स्वरूप अलिनि अथवा भ्रमरी को मुख रूपी पंकज अथवा कमल ने रोक लिया है। लाज के कारण वह प्रकट नहीं हो रहा है। यहां इस प्राकृतिक तथ्य को सीता जी की दशा बताने के लिए उपयोग में लाया गया है कि भंवरा रात भर कमल के भीतर ही रहता है ।
सीता जी की मनोदशा को राम भली-भांति समझ रहे थे । तुलसी लिखते हैं :-
देखी विपुल विकल वैदेही (दोहा वर्ग संख्या 260)
तुलसी कुछ ऐसी उपमाऍं देते हुए इस अवसर को वर्णित कर रहे हैं जो आम जन जीवन से जुड़ी हुई हैं । इन सब के पीछे उनका उद्देश्य यही है कि राम इस बात को भलीभांति समझ चुके हैं कि अब शिवजी का धनुष तोड़ने में एक क्षण का भी विलंब नहीं होना चाहिए । तुलसी ने लिखा है :-
तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा। मुऍं करइ का सुधा तड़ागा।। (दोहा वर्ग संख्या 260)
तृषित अर्थात प्यासा व्यक्ति बारि अर्थात पानी के बिना ही शरीर त्याग दे तो बाद में अमृत का तालाब भी क्या कर सकता है?
एक अन्य लोक-जीवन का उदाहरण बताते हुए तुलसी लिखते हैं :-
का वर्षा सब कृषि सुखाने। समय चुकें पुनि का पछतानें।।
अर्थात उस वर्षा का क्या लाभ है, जब सारी कृषि सूख जाए । समय बीतने पर पछताने से क्या होता है। इन सब का अभिप्राय यही है कि भगवान राम सीता के चित्त की प्रसन्नता के लिए अति शीघ्र धनुष तोड़ने के इच्छुक हैं। इस अवस्था का चित्रण तुलसी ने इस प्रकार किया है:-
लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहु न लखा देख सबु ठाढ़ें। तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि भोर कठोरा।। (दोहा वर्ग संख्या 260)
अर्थात धनुष को उठाते समय, चढ़ाते समय और जोर से खींचते समय किसी ने भी नहीं देखा अर्थात इतनी तेजी से यह सब काम हुआ कि झटपट भगवान राम ने मध्य में से धनुष को तोड़ डाला। जिससे अत्यंत कठोर ध्वनि से संसार गूंज उठा। शिव जी का धनुष टूटना एक बड़ी सुखद घटना थी, क्योंकि इसके मूल में राम-सीता का मंगलमय विवाह संपन्न होना लिखा था। यह उचित ही था कि इस समय संगीत के स्वर चारों तरफ गूंज उठे। यह संगीत किन वाद्य यंत्रों के द्वारा संपादित हो रहा था, उसका भी विस्तार से तुलसी ने वर्णन किया है । वह लिखते हैं :-
झांझि मृदंग संख शहनाई। भेरि ढोल दुंदुभी सुहाई।। (दोहा वर्ग संख्या 262)
अर्थात झांझ, मृदंग, शंख, शहनाई, भेरी, ढोल, दुंदुभी अर्थात नगाड़े बजे।
कथा-क्रम में एक बड़ा भारी अवरोध आना लिखा था। भगवान परशुराम शिवजी का धनुष टूटना सुनकर स्वयंवर स्थल पर क्रोधित होकर आ गए। परशुराम जी के व्यक्तित्व का चित्रण तुलसीदास जी ने निम्नलिखित शब्दों में किया है :-
गौरि शरीर भूति भल भ्राजा। भाल विशाल त्रिपुंड विराजा।। शीश जटा शशि बदन सुहावा। रिषबस कछुक अरुण होइ आवा।। वृषभ कंध उर बाहु विशाला। चारु जनेऊ माल मृगछाला।। कटि मुनि बसन तून दुइ बांधे। धनु सर कर कुठारू कल कांधे।। (दोहा वर्ग संख्या 267)
अर्थात गौरि शरीर अर्थात गोरे शरीर पर भूति अथवा भस्म अच्छी लग रही है। भाल विशाल अर्थात माथा विशाल है। जिस पर त्रिपुंड विशेष शोभा दे रहा है। शीश जटा अर्थात सिर पर जटा है। भौंहें टेढ़ी तथाआंखें क्रोध से लाल हैं। कंधे बैल के समान हैं। छाती और भुजाएं विशाल हैं। जनेऊ सुंदर है। माला पहने हुए हैं। मृग की छाल धारण किए हुए हैं। कमर में मुनियों का वस्त्र है। तथा एक विशेषता यह है कि वह अपने साथ तून दुइ अर्थात दो तरकस बांधे हुए हैं। हाथ में धनुष-बाण है और कंधे पर फरसा धारण किए हुए हैं। । यह सारे अर्थ हनुमान प्रसाद पोद्दार जी की टीका के कारण पाठकों को सहज सुलभ हो रहे हैं। ऐसे भगवान परशुराम के स्वरूप को सार संक्षेप में वर्णित करते हुए तुलसीदास जी लिखते हैं :-
धरि मुनि तनु जनु वीर रस, आयउ जहॅं सब भूप (दोहा 268)
अर्थात मुनि का शरीर धारण करके मानों वीर रस ही वहां आ गया है, जहां सब राजा विराजमान थे।
आते के साथ ही परशुराम जी ने एक ही प्रश्न किया:-
कहु जड़ जनक धनुष कै तोड़ा।। (दोहा वर्ग संख्या 269)
अर्थात जनक ! अब तुम मुझे यह बताओ कि शिवजी का धनुष किसने तोड़ा है?
अब बात बिगड़ गई । सीता जी की माताजी सोचने लगीं कि पता नहीं अब क्या होगा? दूसरी तरफ जो कुटिल राजा थे, वह हर्षित होने लगे । कथा में जब तक उतार-चढ़ाव नहीं आता, उसमें आनंद भी नहीं आता। जिस तरह भगवान ने इस संसार में नदी, पर्वत और खाइयां बनाई हैं, ठीक उसी तरह से जो जीवन का क्रम है और घटनाएं हैं, वह सभी भारी उतार-चढ़ाव के साथ जुड़ी हुई होती है। इसी में संसार के परिचालन का रहस्य छुपा हुआ है।
————————————-
लेखक : रवि प्रकाश (प्रबंधक)
राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय (टैगोर स्कूल), पीपल टोला, निकट मिस्टन गंज, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

273 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
ग़ज़ल सगीर
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
बदली मन की भावना, बदली है  मनुहार।
बदली मन की भावना, बदली है मनुहार।
Arvind trivedi
23/70.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/70.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*माटी कहे कुम्हार से*
*माटी कहे कुम्हार से*
Harminder Kaur
पलटे नहीं थे हमने
पलटे नहीं थे हमने
Dr fauzia Naseem shad
कोतवाली
कोतवाली
Dr. Pradeep Kumar Sharma
मातृत्व दिवस खास है,
मातृत्व दिवस खास है,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
तू भूल जा उसको
तू भूल जा उसको
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
*जीवन के संघर्षों में कुछ, पाया है कुछ खोया है (हिंदी गजल)*
*जीवन के संघर्षों में कुछ, पाया है कुछ खोया है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
अंधकार जितना अधिक होगा प्रकाश का प्रभाव भी उसमें उतना गहरा औ
अंधकार जितना अधिक होगा प्रकाश का प्रभाव भी उसमें उतना गहरा औ
Rj Anand Prajapati
इजाज़त है तुम्हें दिल मेरा अब तोड़ जाने की ।
इजाज़त है तुम्हें दिल मेरा अब तोड़ जाने की ।
Phool gufran
एक विचार पर हमेशा गौर कीजियेगा
एक विचार पर हमेशा गौर कीजियेगा
शेखर सिंह
मुक्तक
मुक्तक
Rajesh Tiwari
बूथ लेवल अधिकारी(बीएलओ)
बूथ लेवल अधिकारी(बीएलओ)
gurudeenverma198
तुलनात्मक अध्ययन एक अपराध-बोध
तुलनात्मक अध्ययन एक अपराध-बोध
Mahender Singh
तारों के मोती अम्बर में।
तारों के मोती अम्बर में।
Anil Mishra Prahari
तीज मनाएँ रुक्मिणी...
तीज मनाएँ रुक्मिणी...
डॉ.सीमा अग्रवाल
हनुमानजी
हनुमानजी
सत्यम प्रकाश 'ऋतुपर्ण'
दो घूंट
दो घूंट
संजय कुमार संजू
वो चिट्ठियां
वो चिट्ठियां
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
The life of an ambivert is the toughest. You know why? I'll
The life of an ambivert is the toughest. You know why? I'll
Sukoon
रखें बड़े घर में सदा, मधुर सरल व्यवहार।
रखें बड़े घर में सदा, मधुर सरल व्यवहार।
आर.एस. 'प्रीतम'
मैं मांझी सा जिद्दी हूं
मैं मांझी सा जिद्दी हूं
AMRESH KUMAR VERMA
जीवन एक संगीत है | इसे जीने की धुन जितनी मधुर होगी , जिन्दगी
जीवन एक संगीत है | इसे जीने की धुन जितनी मधुर होगी , जिन्दगी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
"ईमानदारी"
Dr. Kishan tandon kranti
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
बिखरे सपनों की ताबूत पर, दो कील तुम्हारे और सही।
बिखरे सपनों की ताबूत पर, दो कील तुम्हारे और सही।
Manisha Manjari
काश.! मैं वृक्ष होता
काश.! मैं वृक्ष होता
Dr. Mulla Adam Ali
मैं नही चाहती किसी के जैसे बनना
मैं नही चाहती किसी के जैसे बनना
ruby kumari
Mystical Love
Mystical Love
Sidhartha Mishra
Loading...