“सब कुछ रेडिमेड है”
सब कुछ रेडिमेड है
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जहां सूट, पैंट व बनता था कुर्ता,
उस टेलर में ही लगा अब शेड है;
दर्जी को, अब सीने से परहेज है;
सब पहनता सब कुछ रेडिमेड है।
जिन बच्चों का हक था,प्यार का;
माता-पिता के हर-पल दुलार का,
अब तो काम पर, मम्मी व डैड हैं;
उसे,प्यार मिलता अब रेडिमेड है।
बच्चे जब भी , अपने स्कूल जाए;
मां के हाथ बना,ना कुछ खा पाए;
घर में , हर काम हेतु रहती मेड है;
टिफिन, नाश्ता भी तो, रेडिमेड है।
ना अब कोई कहीं भी गुरुकुल है;
बस दिखता,नाम का ही स्कूल है;
पढ़ाई भी तो, अब सदा प्रीपेड है;
परीक्षा-परिणाम , अब रेडिमेड है।
जो ट्रेनें होती थी,अब बुलेट ट्रेन है;
आसमान में है अब,पटरी बिछती;
अब नहीं दिखता,वो मीटर गेज है;
अब तो, हवा में ही सब रेडिमेड है।
जिजीविषा हेतु, कुछ नही मेहनत;
पेड़ पौधे की भी , नहीं है जरूरत;
शुद्ध प्राण-वायु लेने में भी, खेद है;
ऑक्सीजन भी,बिकता रेडिमेड है।
विवाह की,किसी घर रौनक कहां;
ना ही, गांव या जगह का ठिकाना;
ना ही मंडप, शामियाना व सेज है;
सब कुछ एक ही जगह रेडिमेड है।
अब बच्चे भी मिलते,अनाथालय में;
माता- पिता , नहीं हरेक आलय में;
फिर गोद लेने आते,मम्मी व डैड है;
अब बच्चा व माता-पिता रेडिमेड है।
एक घर होता था , सबका अपना;
अपनी जमीं पे, सजता था सपना;
अब तो , ऊंची बिल्डिंग गिफ्टेड है;
शहर का , घर भी अब रेडिमेड है।
रिश्ता नाता कहां किसी को भाता,
अपने पराये , पराया अपना होता;
अब रिश्ता में , नहीं कोई क्रेज है;
अब रिश्ता भी मिलता, रेडिमेड है।
अब कहां है, कवि की ही कल्पना;
गौण हो गई, लेखक की वो रचना;
दिखाता सब,बस अपनी ही ग्रेड है;
अब रचना या लेखन भी रेडिमेड है।
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……..✍️पंकज कर्ण
………….कटिहार।।