“सब्र”
??”सब्र” ??
कौन जानता था, दुनिया की एक दास्तान, ऐसी भी होगी..परेशान है आराम,मंद है काम!
ज्ञान ना हो अज्ञान,रुक रे इंसान, यह है फ़रमान!
मन का सब्र, तन की खबर, ले तू लम्बी साँस!
मेहनत के साथ, प्रभु का ध्यान,
तेरी यह पुकार, करेगी बेड़ा पार!
ज़िन्दगी की मस्ती, मस्ती में, थोड़ा रुक जा!होलेय होलेय, चल हे मुसाफ़िर, रुक कर भी उठ जा!
हड़बड़ी छोड़, धैर्य को पकड़,
आज का सबक़, है सब्र,
मीठा समझ कर पीता चला जा।।
सपना
बैंकॉक (थाईलैण्ड)