Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Feb 2021 · 3 min read

‘ सबसे अनोखी मैं ‘

2020 के बारे में क्या कहूँ समझ नही आ रहा है लोगों के लिए बहुत अलग सा रहा पूरा साल लेकिन मेरे लिए बस थोड़ा सा अलग रहा । 3500 स्क्वायर फीट का घर रोज झाड़ू – पोछा – डस्टिंग ( सफाई की थोड़ी बिमारी है , पोछे में पति मदद कर देते थे ) खाना ( जितने देश का आता है सब ) बर्तन , कपड़े तह कर लगाना , बिस्तर ठीक करना और इन दिनों हर बाहर से आई हर एक वस्तु को सेनेटाईज़ करना , सब्जियों को भिगोना फिर चार से पाँच बार धोना – सुखाना और फ्रिज में रखना ( सबने किया होगा ) सब मैं अकेले करती , मुझमें एक खराब बात है की मैं किसी से अपने बच्चों से भी काम नही करा पाती मुझे लगता है की मैं बोलूँगीं वो जब तक करेगें तब तक तो उससे आधे टाईम मे मैं खुद ही करके रख दूँगीं । इन सब कामों के बीच इतना थक जाती की अपना सिरामिक नही कर पाई हाँ पसीना सुखाते – सुखाते लेखन का कार्य खूब किया जिससे रोज मन को एक संबल मिलता था । बाहर ना जाने का कोई दुख नही ( मार्च से तीन बार घर से बाहर निकली हूँ ) कोरोना के पहले जब हालात सामान्य थे तब भी बहुत कम बाहर निकलती थी , फुर्सत ही नही रहती थी भगवान भी लेने आते तो मैं उनको भी बोलती ‘ प्लीज भगवान जी थोड़ा रूक कर आइये अभी आपके साथ जाने की भी फुर्सत नही है ‘ । मुझे अस्थमा है डायबिटीज है आठ ऊँगलियाँ लॉक हो जाती हैं सुबह चाय का कप तक पकड़ने में दिक्कत होती है फिर धीरे – धीरे खुलती हैं और मैं देवी बन जाती हूँ फटाफट सब काम निपटा कर नहा धो पूजा – पाठ कर फिर चाय पीते हुये आराम करती हूँ । किसी को घर में घुसने नही दिया आज भी ‘ अतिथि देवो भव: ‘ का अर्थ भूली हुई हूँ इतने खतरनाक कोरोना से डर और सावधानी ही भली है , हाँ एक बात तो बताना भूल ही गई मार्च से आज तक मैने अपने बालों पर कैंची नही लगाई है 25 सालों बाद ऐसा हुआ ( शादी के समय कम वक्त के लिए थोड़े बाल बढ़ाये थे ) । इस पूूरे 2020 में मेरा मन संतुष्ट रहा लेखन में उपलब्धियां मिल रहीं थी बस उनके लिए दुख था और है जिनको पैदल अपने घर जाना पड़ा और जिन्होंने अपनों को खोया और आज भी खो रहे हैं । लेकिन कुछ लोगों को किसी बात का कोई फर्क नही पड़ा ना आज पड़ रहा है कोरोना उनके लिए मेहमान था जो आया और इनसे इजाजत लेकर अपने घर चला गया , ना ये मास्क पहनते हैं ना हाथ धोते हैं और जो लोग ऐसा करते हैं उन पर ये हँसते हैं । इस साल ने अपनों को छीना तो अपनों को अपनों के पास भी रखा प्रकृति को भी साँस लेने का मौका मिला जिसको देख हमको हमारी गल्तियों का एहसास और शर्मींदगी हुई । मेरी जिंदगी में ज्यादा उथल – पुथल नही हुई मेरे बच्चे मेरे पास थे जो दुनिया की सबसे बड़ी नेमत थी और रही काम की बात तो आज भी दस – बारह लोगों पर तो भारी हूँ ।
यूँ रश्क ना कर तू मेरी हिम्मत और मेहनत पर
इस 2020 के पहले से मैं ऐसी ही अनोखी थी ।

नोट : मेरे इस अनोखे पन को कृपया नज़र मत लगाईयेगा ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 30/12/2020 )

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2 Comments · 196 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Mamta Singh Devaa
View all
You may also like:
दुश्मन को दहला न सके जो              खून   नहीं    वह   पानी
दुश्मन को दहला न सके जो खून नहीं वह पानी
Anil Mishra Prahari
कारवां गुजर गया फ़िज़ाओं का,
कारवां गुजर गया फ़िज़ाओं का,
Satish Srijan
2831. *पूर्णिका*
2831. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*जरा काबू में रह प्यारी,चटोरी बन न तू रसना (मुक्तक)*
*जरा काबू में रह प्यारी,चटोरी बन न तू रसना (मुक्तक)*
Ravi Prakash
बहुत यत्नों से हम
बहुत यत्नों से हम
DrLakshman Jha Parimal
समय बदल रहा है..
समय बदल रहा है..
ओनिका सेतिया 'अनु '
गाँव से चलकर पैदल आ जाना,
गाँव से चलकर पैदल आ जाना,
Anand Kumar
याद आते हैं वो
याद आते हैं वो
रोहताश वर्मा 'मुसाफिर'
मनहरण घनाक्षरी
मनहरण घनाक्षरी
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
सुखी को खोजन में जग गुमया, इस जग मे अनिल सुखी मिला नहीं पाये
सुखी को खोजन में जग गुमया, इस जग मे अनिल सुखी मिला नहीं पाये
Anil chobisa
आओ तो सही,भले ही दिल तोड कर चले जाना
आओ तो सही,भले ही दिल तोड कर चले जाना
Ram Krishan Rastogi
सहज है क्या _
सहज है क्या _
Aradhya Raj
जो लिखा है
जो लिखा है
Dr fauzia Naseem shad
रिश्ता ये प्यार का
रिश्ता ये प्यार का
Mamta Rani
💐प्रेम कौतुक-291💐
💐प्रेम कौतुक-291💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में रमेशराज के व्यवस्था-विरोध के गीत
'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में रमेशराज के व्यवस्था-विरोध के गीत
कवि रमेशराज
खुले लोकतंत्र में पशु तंत्र ही सबसे बड़ा हथियार है
खुले लोकतंत्र में पशु तंत्र ही सबसे बड़ा हथियार है
प्रेमदास वसु सुरेखा
अधरों पर शतदल खिले, रुख़ पर खिले गुलाब।
अधरों पर शतदल खिले, रुख़ पर खिले गुलाब।
डॉ.सीमा अग्रवाल
" ब्रह्माण्ड की चेतना "
Dr Meenu Poonia
"मैं" का मैदान बहुत विस्तृत होता है , जिसमें अहम की ऊँची चार
Seema Verma
*पानी व्यर्थ न गंवाओ*
*पानी व्यर्थ न गंवाओ*
Dushyant Kumar
खिलेंगे फूल राहों में
खिलेंगे फूल राहों में
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
आप की मुस्कुराहट ही आप की ताकत हैं
आप की मुस्कुराहट ही आप की ताकत हैं
शेखर सिंह
अगर
अगर
Shweta Soni
ग़ज़ल -1222 1222 122 मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन
ग़ज़ल -1222 1222 122 मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन
Neelam Sharma
क्राई फॉर लव
क्राई फॉर लव
Shekhar Chandra Mitra
गौण हुईं अनुभूतियाँ,
गौण हुईं अनुभूतियाँ,
sushil sarna
दूसरों को समझने से बेहतर है खुद को समझना । फिर दूसरों को समझ
दूसरों को समझने से बेहतर है खुद को समझना । फिर दूसरों को समझ
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
फूल और कांटे
फूल और कांटे
अखिलेश 'अखिल'
चींटी रानी
चींटी रानी
Manu Vashistha
Loading...