सबब पूछते हैं…
हया के चिलमन को तोड़कर नज़र से,
बड़ी सादगी से झुकी निगाहों का सबब पूछते हैं।
दर्द ए दिल का हमें देकर के तोहफा,
बड़ी नज़ाकत से तेज धड़कनों का सबब पूछते हैं ।
ख़ुशनुमा गुफ्तगू से गुदगुदा के हमें,
बड़ी नफासत से बेसाख्ता हँसी का सबब पूछते हैं।
दिल में जगाकर बेइंतहा जज़्बात,
बड़ी हमदर्दी से वो तर आँखों का सबब पूछते हैं।
दिल ए नादां को हमारे करके बेक़रार,
बड़ी मासूमियत से वो रतजगे का सबब पूछते हैं ।
मोहब्बत के जाम से हमें करके लबरेज़,
बड़ी शरारत से हमारी खुमारी का सबब पूछते हैं।
आहिस्ता से आकर हमारी जिंदगी में,
बड़ी शान से छलकती खुशी का सबब पूछते हैं ।
डॉ सुकृति घोष
ग्वालियर, मध्यप्रदेश