Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Nov 2017 · 3 min read

****सफेद जोड़ा****

आज मन क्यूं इतना घबराया है ।
ईश्वर की इस धरा पर यह कैसा मंज़र छाया है ।
सफेद जोड़े में सिमटी-सी बैठी हूँ ।
मन में रह-रहकर सिर्फ माँ-बाप का ही ख्याल सता रहा है ।

माँ जब कोई पूछेगा तुझसे तब कैसे बताएगी ।
क्या तेरी बेटी जीवन भर मनहूस कहलाएगी ?
कोई कहेगा तुझसे यह तो तू मन को कैसे समझाएगी ।
समाज का मुहँ तू कैसे बंद कर पाएगी ।

मनहूस कहेगी दुनिया तेरे ही अंश को तू कैसे सहन कर पाएगी । क्या तू सबको जवाब देने की हिम्पामत जुटा पाएगी ।
माता पापा को रोने मत देना ।समझाना उनको यह तो सृष्टि का नियम है,नसीब का खेल है ।

किस्मत सबकी ऊपर ही लिखी जाती है ।
यह तो रंगमंच है कठपुतलियाँ ही नजर आती हैं ।
माँ !क्या भैया की कलाई सूनी ही रह जाएगी ?
क्या उसके लिए कभी अब राखी नहीं आएगी ?

क्या मेरी किस्मत कभी न चमक पाएगी ?
क्या अब ये जिंदगी तानों में ही कट जाएगी ?
इसलिए, क्योंकि मैं एक लड़की हूँ ।
माँ क्या लड़की होना इतना बड़ा पाप है ?
विधवा होने के बाद सफेद जोड़ा ही उसका संसार हैं ।

कैसे मैं जुटाऊँ साहस बाहर निकलने का ?
अपना जीवन फिर से शुरू करने का ।
तेरा ख्याल सताता है ।
पापा का चेहरा सामने आ जाता है ।

कैसे सहोगी दुनिया के तानों को तुम ?
कैसे बंद करोगी उनके गालियों भरे मुँह को तुम ?
माँ नहीं है क्या खुशी पाने का अधिकार मुझे फिर से ।
क्योंकि मैं हूँ एक लड़की,दुनिया की नजर में एक अबला लड़की ।

मां क्या तू शर्मिंदा महसूस करेगी स्वयं को,
जब करेगा कोई बाहर का मेरी बुराई तुझसे ।
क्या तू सुन पाएगी ?
क्या तू उसको जवाब दे पाएगी ?
क्या तू मुझ पर फिर से गर्व कर पाएगी ।
माँ मुझे सफेद जोड़े में देखकर क्या तू खुश रह पाएगी ?

माँ सब कुछ कहना,सब कुछ सुनना पर यह कभी न कहना–‘बिटिया तू जीवन में कभी न चाहेगी’।
माँ नहीं है क्या मुझे अधिकार जीवन में रंग भरने का फिर से ? क्या चार दीवारी ही है मेरी सीमा रेखा के दायरे में अब ।

माँ यह कैसा संसार है बेटी के लिए कुछ और बेटों के लिए कुछ और ।
क्यों अभी भी यहां भेदभाव है ?क्या बेटों से ही संसार है ?
माँ इस नियम को बदलना होगा ।

बेटियाँ नहीं है किसी से कम यही ज़हन में भरना होगा ।
बदलाव लाने के लिए एक को तो पहल करनी ही होगी,उसकी शुरूआत आज ही अभी से करनी होगी ।
उतार कर यह सफेद कफन अंग से इंद्रधनुषी रंगों के साथ जीवन फिर से शुरूआत फिर से करनी होगी ।

पढ़ूँगी,लिखूँगी आगे और अब मैं । नहीं खत्म होने दूँगी जीवन को यूँ ही बेमोल अब मैं ।
नहीं तुम्हें मैं दुनिया के ताने सहने दूँगी अब मैं ।
भाई की कलाई कभी न सुनी रहने दूँगी अब मैं ।

पापा की जीवन का सहारा बनूँगी ।
समाज की हर रूढ़िवादिता का सामना करुँगी ।
घर बाहर दोनों संभालूँगी अब मैं ।परिवार का बेटा अब मैं बनूँगी ।

‘अगले जन्म मुझे बिटिया न दीजो’ ऐसा कहने वालों के मुँह बंद मैं करूँगी ।
वादा है मेरा यह तेरे से आज– कहते हैं जो बिटिया के लिए यह बात ।
ऐसा नाम करूँगी यह ठाना है ।
ऐसा कहने वालों के मुँह से यही यही कहलवाना है कि
है ईश्वर! दीजो अगर हमें तो बेटे से पहले बिटिया ही दीजो ।
क्योंकि बेटी ईश्वर का संपूर्ण खजाना है ?

Language: Hindi
1 Like · 296 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अजीब मानसिक दौर है
अजीब मानसिक दौर है
पूर्वार्थ
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
Rj Anand Prajapati
सुखी होने में,
सुखी होने में,
Sangeeta Beniwal
विचार
विचार
Godambari Negi
नारी जीवन
नारी जीवन
Aman Sinha
चाह और आह!
चाह और आह!
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
प्यार क्या है
प्यार क्या है
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
बुंदेली दोहा- पैचान१
बुंदेली दोहा- पैचान१
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
कृपा करें त्रिपुरारी
कृपा करें त्रिपुरारी
Satish Srijan
सहन करो या दफन करो
सहन करो या दफन करो
goutam shaw
छोड़ने वाले तो एक क्षण में छोड़ जाते हैं।
छोड़ने वाले तो एक क्षण में छोड़ जाते हैं।
लक्ष्मी सिंह
A Departed Soul Can Never Come Again
A Departed Soul Can Never Come Again
Manisha Manjari
*होटल राजमहल हुए, महाराज सब आम (कुंडलिया)*
*होटल राजमहल हुए, महाराज सब आम (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
"इश्क़ वर्दी से"
Lohit Tamta
जिंदगी में दो ही लम्हे,
जिंदगी में दो ही लम्हे,
Prof Neelam Sangwan
आसमान
आसमान
Dhirendra Singh
रेल दुर्घटना
रेल दुर्घटना
Shekhar Chandra Mitra
■ निकला नतीजा। फिर न कोई चाचा, न कोई भतीजा।
■ निकला नतीजा। फिर न कोई चाचा, न कोई भतीजा।
*Author प्रणय प्रभात*
तन्हाई बिछा के शबिस्तान में
तन्हाई बिछा के शबिस्तान में
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मां सिद्धिदात्री
मां सिद्धिदात्री
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
इश्क़ में जूतियों का भी रहता है डर
इश्क़ में जूतियों का भी रहता है डर
आकाश महेशपुरी
खुल जाता है सुबह उठते ही इसका पिटारा...
खुल जाता है सुबह उठते ही इसका पिटारा...
shabina. Naaz
रमेशराज के विरोधरस के दोहे
रमेशराज के विरोधरस के दोहे
कवि रमेशराज
चुनाव चालीसा
चुनाव चालीसा
विजय कुमार अग्रवाल
ज़िन्दगी एक उड़ान है ।
ज़िन्दगी एक उड़ान है ।
Phool gufran
नहीं मिलते सभी सुख हैं किसी को भी ज़माने में
नहीं मिलते सभी सुख हैं किसी को भी ज़माने में
आर.एस. 'प्रीतम'
रक्षाबंधन
रक्षाबंधन
Pratibha Pandey
विनाश नहीं करती जिन्दगी की सकारात्मकता
विनाश नहीं करती जिन्दगी की सकारात्मकता
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
23/32.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/32.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
विषय - पर्यावरण
विषय - पर्यावरण
Neeraj Agarwal
Loading...