सफल हुए
*** सफल हुए ***
विरक्ति मन में चाह बसी
प्रिय!
इस मनरूपी बंधन तोड़
तुम सफल हुए
इसे निश्चलता से भिगोया आपने
सागर पाकर भी जो सूखा था
उसे सुकून में डुबोया है
इस असमय सुख से
आनंदित मन मेरा
लघु खुशियां सींचने में लगा
अशांत हृदय यह
न भाव छुपाने आया इसे
सब आस प्रभु पर छोड़कर
दो अनजान मन स्थिर हुए
हे प्रिय!
इस मनरूपी बंधन तोड़
तुम सफल हुए ll
*** ~ कुmari कोmal