सफलता
जो हो कभी निराश
छूट जाए सब आश
बैठे हताश सब कुछ हार
जीना लगता बोझिल बेकार
चहुँ ओर तम का घेरा
लगे न कोई अपना मेरा
सब कुछ लगता व्यर्थ
जीने का न कोई अर्थ
हर कोशिशें नाकाम
कर लूँ जीवन तमाम
तब एक पल को रुकना
आँखें मूँद माँ को तकना
खड़ी मिलेगी उसी चौखट पर
जहाँ छोड़ आए थे कह कर
लौटूँगा कुछ बन कर अम्मा
बस थोड़ा सा धीरज धरना
धीरज वही खोए जाते हो
हृदय बबूल बोए जाते हो
स्मरण करो वो सजल नयन
दिखाए जिसने तुम्हें सपन
रात रात वो आँखें जागी
दिन दिन तेरे पीछे भागी
त्यागी अपने सपनों की राह
ताक रखी अपनी हर चाह
तोड़े ख़्वाबों के गुल्लक सारे
निज अरमानों के सिक्के वारे
तू आगे बढ़ कह पीछे छूटी
आस की डोर कभी न टूटी
फिर तू क्यूँ टूटा जाता है
ये अंत न तुझको भाता है
उठ माँ की आँखों का तारा
भेद अंधेरा तय है सवेरा
दिए वचन की गाँठ बाँध ले
लक्ष्य को अर्जुन सा साध ले
कर्म का फल होगा निश्चित
फिर तू क्यूँ होता है चिंतित
आज नही तो कल सही
होगा तू सफल यहीं
रेखांकन।रेखा
IIT के दो छात्रों की आत्महत्या की खबर पढ़ कर मन बहुत विचलित हुआ तो बस कलम चल पड़ी… एक सकारात्मक सोच की ओर।