सफलता का बीज
सफलता का बीज दिमाग में पहले अंकुरित होता है। शब्द, व्यक्तित्व निर्धारित करते हैं।, इसलिए इंसान को सोच समझकर बोलना चाहिए।
एक बार की बात है। अमेरिका में कई वैज्ञानिकों ने आकलन करके यह निष्कर्ष निकाला कि अगर मृत इंसानी शरीर बनाया जाए तो उसमें 5 ट्रिलियन डॉलर यानी 50 खरब डॉलर का खर्च आएगा। इसका आशय यही है कि हमारा शरीर बहुत बड़ी अमानत है। हमारा हर सेकण्ड करोड़ों का है। हमें सोच पक्की करनी होगी कि शरीर के रूप में हमारे पास बहुत अमूल्य चीज है।
जब कोई व्यक्ति एक सामान्य सा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण लेते हैं तो उसका एक यूजर मैन्युअल होता है, लेकिन मनुष्य अपने जीवन में इसका पालन नहीं कर रहे। जो लोग इसका पालन करते हैं, उनके प्रोग्रेस और सक्सेस की यात्रा शुरू हो जाती है। इसमें सबसे पहला कदम है कोई संकल्प लें और लक्ष्य तय करें कि हमें क्या करना है और क्या नहीं?
अमेरिका में जॉन गोडार्ड नाम के एडवेंचरर थे। उन्होंने 14-15 साल की उम्र में अपने सपने और लक्ष्य को एक कागज पर लिखना आरम्भ किया। उन्होंने लिखा- मुझे एवरेस्ट पर जाना है, नील नदी तैरकर पार करनी है, इत्यादि। ऐसा करते- करते उन्होंने जीवन के 57 लक्ष्य लिख लिए। जब उनकी उम्र 60 वर्ष हुई तो उन्होंने लक्ष्य वाला पन्ना खोलकर देखा और चेक किया। तब वह चौंक गया। उसने पाया कि वे अब तक 57 में से 55 लक्ष्य पूरे कर चुके थे।
दरअसल सपने तो हर कोई देखते हैं, लेकिन उन सपनों को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत नहीं करते। वास्तव में सामान्य पुरुषार्थ से इंसान सामान्य बना रहता है, लेकिन अगर प्रयत्न बढ़कर किए जाएँ तो सामान्य व्यक्ति भी महान बन सकता है।
मेरी प्रकाशित 45 वीं कृति : दहलीज़- लघुकथा संग्रह
(दलहा, भाग-7) से,,,,
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
अमेरिकन एक्सीलेंट राइटर अवार्ड प्राप्त।