सफर
गाँव से कस्बे तक का सफर
काफी महंगा रहा
और लम्बा भी
जाने कहाँ खो गयी
बारिशों की धुन
मिट्टी की महक
रिश्तों की खुश्बू
उरेठ बोलियों में
मुहब्बतों के ताने
अमावस और पूर्णिमा का फर्क
चाँद की चहलकदमी
मुर्गें की बाग
मदमस्त हवाओं की बयार
बिना मौसम के झूले
किस्से कहानियों की शाम
बरगद की छांव
नीम के फूल
पलाशों की खुशबू
बेरियों पर पत्थरों की बरसात
और उन से जुड़े एहसास
खर्च हो रहे हैं
धीरे धीरे सब
और सिमटती जा रही हैं
मन मे
कस्बे की धूल
यादों में सूनापन
और ख़्वाब
वो खो गए हैं
या लौट गए हैं
गाँव के दामन में
किसी बचपन से लिपट कर
फिर से फैलाने पंख
आसमानों में