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9 Jun 2021 · 1 min read

सफर

गाँव से कस्बे तक का सफर
काफी महंगा रहा
और लम्बा भी
जाने कहाँ खो गयी
बारिशों की धुन
मिट्टी की महक
रिश्तों की खुश्बू
उरेठ बोलियों में
मुहब्बतों के ताने
अमावस और पूर्णिमा का फर्क
चाँद की चहलकदमी
मुर्गें की बाग
मदमस्त हवाओं की बयार
बिना मौसम के झूले
किस्से कहानियों की शाम
बरगद की छांव
नीम के फूल
पलाशों की खुशबू
बेरियों पर पत्थरों की बरसात
और उन से जुड़े एहसास
खर्च हो रहे हैं
धीरे धीरे सब
और सिमटती जा रही हैं
मन मे
कस्बे की धूल
यादों में सूनापन
और ख़्वाब
वो खो गए हैं
या लौट गए हैं
गाँव के दामन में
किसी बचपन से लिपट कर
फिर से फैलाने पंख
आसमानों में

2 Likes · 1 Comment · 297 Views
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