सफर
सफर पर चल पड़ी हूं मैं
मंजिल की ना खबर है
राहै बनती जा रही है
इरादे मेरे बेसबर है
मेरे साथ-साथ चलने लगे हैं रास्ते
मंजिल से बेहतर है यह रास्ते
चली जा रही हूं मैं बहुत दूर
जहां पर खिला है प्रकृति का नूर
चली हूं मैं जिस सफर पर
उसका कोई अंजाम तो होगा
जो हौसले दे सके ऐसे
कोई जाम तो होगा
जो दिल में रखी है
कामयाबी को अपना बनाने की उम्मीद
तो उसका कोई इंतजाम भी होगा
Written by Sneha Singh
Class 11a
St Anthony Convent Girls’ intercollege
Prayagraj