सपनो का महल
कितनी मेहनत से बनाया था मैंने सपनों का महल
एक आंधी सी चली और इमारत वो हंसी टूट गई
इतनी मुद्दत के बाद किस्मत मुझ पर मेहरबान हुई
तारों की चाल बदली और ये फिर मुझसे रूठ गई.
मेरी साँसों में बस तेरी साँसों की खुशबु बसती थी
लाखों गुल खिलते थे मेरे संग में जब तू हँसता था
तेरी आवाज़ भी सुनने को अब हम है मोहताज़ हुए
इतने बेबस तो हम कभी भी न थे जो हैं आज हुए.
मुझे यकीन है हिकारत और नफरत का बाँध टूटेगा
गिले शिकवे ना रहेंगे और ना ही मुझसे कोई रूठेगा
प्रीत का ऐसा उजाला सारे जीवन को जगमगाएगा
गम के अंधेरों का कोई साया कभी ना पास आएगा.