सपनों में धीरे धीरे वो कौन आ रहा है।
गज़ल
221…….2122……..221…….2122
सपनों में धीरे धीरे वो कौन आ रहा है।
मिलने का ख़्वाब लेकर दिल में समा रहा है।
रातों का चैन छीना है जिसने मेरा यारो,
जब दिन में सोचता हूं वो चहरा भा रहा है।
दुनियां ये जल रही है तुझको खबर न अब तक,
तू नासमझ है अपना घर खुद जला रहा है।
ये सब्जबाग ही हैं अब तक दिखाए तुमने,
उन्नति के नाम पर ही सब बिकता था रहा है।
जिसने रुलाया सबको छीनी हँसी जहां की,
आहट सुनाई देती वो फिर से आ रहा है।
मा- बाप बृद्ध तरसे बच्चे को देखने को,
बेकार चाहे फिर वो लाखों कमा रहा है।
अब छोड़ दुश्मनी को प्रेमी बनो जहां के,
इक प्रेम ही जहां मे गुलशन खिला रहा है।
………✍️ प्रेमी