सपने -१
आंखों में सपने
लहराते समंदर – से
आशाओं की
उठती गिरती लहरें
भ्रमित खुशियां
कहां ठहरें
छोटी – छोटी खुशियां
और उनकी तलाश
कभी अपने में
कभी तुम्हारे में
यहीं कहीं आस – पास
भीतर , बहुत भीतर
जंगल बियाबान
आषाढ़ सा आसमान
निगलने को आतुर
चंद सपने….
चंद खुशियां….
चंद आशाएं….
इन सबसे अलग
एक कतरा विश्वास
धकियाता
आगे आता
पास बिलकुल पास
खुशियों भरी
आशाओं का उजास ।
अशोक सोनी
भिलाई ।