सपना सजने लगा है।
तोहमतों का बाजार देखो बड़ा चलने लगा है।
आदमीं ही आदमीं को अब तो खलने लगा है।।1।।
सबकी ही है अदावत यहाँ किसी ना किसी से।
बिना तपिश के ही आदमी देखो जलने लगा है।।2।।
रोक कर उससे पूंछे तो कोई उसे क्या हुआ है।
वह आदमियों से अब इतना क्यों डरने लगा है।।3।।
उसका रिश्ता तय हुआ है इक अमीर घराने से।
गरीब की आंखों में देखो सपना सजने लगा है।।4।।
अपने ही घर में बिटिया को वहसी नजरें घेरे है।
देखो आदमी अब कितना शैतान बनने लगा है।।5।।
गरीब का लड़का पढ़ कर कलेक्टर क्या बना।
अमीर आदमीयों की आँखों मे खरकने लगा है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ