सन्नाटों में चीख रहे हैं, दहशत के हथियार मगर
सन्नाटों में चीख रहे हैं, दहशत के हथियार मगर ।
भारतवासी समझ रहे हैं, इसको ही त्यौहार मगर ।
भला मौत के पंजे भी कब, त्योहारों के दर्पण थे ।
भारत के त्यौहारों में बस, शामिल प्रेम समर्पण थे ।
जाने किसने शांति शिखा में, बारूदों को झोंक दिया ।
नर्म हृदय में किसने निर्मम, चाक़ू लाकर भोंक दिया ।
दीवाली का पर्व प्रेम की, एक अटूट कहानी था ।
सूर्यवंश में मर्यादा की, एक पुनीत निशानी था ।
कुछ नाकारे फोड़ पटाखे, जी भर हँसते गाते हैं ।
इसी बहाने अल्पबुद्धि का, एक प्रमाण दिखाते हैं ।
किन ग्रन्थों ने दीवाली से, बारूदों को जोड़ दिया ।
अरे मूर्खों किसने कह दो, संस्कृति का रुख मोड़ दिया ।
राम आगमन पर तो केवल, घी के दिए जलाए थे ।
सूर्यवंश के जनमानस ने, दिल से दिल महकाये थे ।
हर्षित होकर हंसने गाने, वाले दिन क्या करते हो ।
कुदरत के सीने में खुलकर, जहर मौत का भरते हो ।
जला सको तो दीप ख़ुशी के, मिलकर सभी जलाओ तुम ।
किसी अँधेरे जीवन से यों, तम को दूर भगाओ तुम ।
खुशियाँ देकर खुशियाँ पाना, इसका नाम दिवाली है ।
अन्धकार में दीप जलाना, इसका नाम दिवाली है ।
रोते अधरों को चहका दे, उसका नाम दिवाली है ।
गम को पावन गीत बना दे, उसका नाम दीवाली है ।
क्रोध, अनीति, अधर्म जला दे, उसका नाम दिवाली है ।
पत्थर हृदयों को पिघला दे, उसका नाम दिवाली है ।
सत्य, नीति, सौहार्द जिला दे, उसका नाम दिवाली है ।
जो पीड़ा को ख़ुशी पिला दे, उसका नाम दीवाली है ।
रामराज्य की याद दिला दे, उसका नाम दिवाली है ।
जो हृदयों से हृदय मिला दे, उसका नाम दीवाली है ।
जो दहशत के बारूदों से, कुदरत को दहलाता है ।
उसका इन पावन त्योहारों, से कोई क्या नाता है???
दीप जलाने का मतलब है, अन्धकार को दूर करें ।
किसी दुखी शोषित का जीवन, खुशियों से भरपूर करें ।
जला सकें तो एक दीप, ऐसा भी चलो जलायें हम ।
धरती से अज्ञान अशिक्षा, का अँधियार मिटायें हम ।
लक्ष्मी का पूजन भी हमको, इसकी याद दिलाता है ।
मन दरिद्र हो तो मानव खुद, ही गरीब हो जाता है ।
चलो आज से और अभी से, यह प्रण मन में ठानें हम ।
त्योहारों का ध्येय देश की, संस्कृति से पहचानें हम ।
मानवता के पर्वों को हम, छल को कभी न छलने दें ।
गैरों की संस्कृति को अपने, दीपों में ना जलने दें ।
गोले बारूदों की चीखें, बच्चों को सुनवाना क्या ?
संस्कारों की अर्थी पर यों, बर्बरता सिखलाना क्या ?
दीवाली में सत्य स्नेह के, दीपों का श्रृंगार करें ।
भूँख और आतंकवाद का, मिल सारे उपचार करें ।
चलो सही अर्थों में मिलकर, दीपावली मनाते हैं ।
मर्यादा के अंतस्थल पर, रामराज्य अपनाते हैं ।।
राहुल द्विवेदी ‘स्मि