सन्देश
अभी न सन्देश भेजने का वह सुख है ,
अभी बस ! भावहीन रह गया यह मुख है ।
यो तो कई आसान माध्यम है अभी सन्देश भेजन का ,
लेकिन नीरस बना है सभी ज़रिया ।
पत्र पाकर जो आनंद मिलते थे ,
क्या अभी वह फ़ोन पर मिलते है ।
पहले भाषाओ को लिखते वक्त अलंकारों का करते थे प्रयोग ,
लेकिन अभी एक भाषा से दूसरा लिखकर करते है दुरूपयोग।
अब पत्र पढ़ आँशु नहीं छलकते है ,
पत्र के इंतज़ार में दिल नहीं धड़कते है ।
अभी सिमट कर रह गयी ये सारी खुशियां ,
बहुत नज़दीक आ गयी है पूरी दुनिया ।
सिर्फ महत्वहीन भावनाएं रह गयी है ,
कागज़ के पन्ने का वह आदान – प्रदान अब इतिहास बन गयी है ।
—- उत्तीर्णा धर