सन्त गुरु घासीदास
‘सतनाम’ को नये सिरे से स्थापित करने का श्रेय विश्व वन्दनीय प्रातः स्मरणीय सन्त शिरोमणि गुरु घासीदास को जाता है। उन्होंने अपने तपोबल द्वारा सत्य मार्ग पर चलकर एक नया आदर्श प्रस्तुत किए। सामाजिक विषमताओं और आडम्बरों का जोरदार खण्डन करते हुए ‘मनखे-मनखे एक बरोबर’ का सन्देश दिए। उन्होंने 7 सन्देश और 42 अमृतवाणी द्वारा सम्पूर्ण मानव समाज के लिए एक ‘आचरण संहिता’ प्रतिपादित की।
सन्त गुरु घासीदास के व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रभावित होकर लाखों लोगों ने सतनाम का अनुसरण करना प्रारम्भ किये। वे सभी लोग ‘सतनामी’ कहलाए। ‘साहेब सतनाम’ का उद्घोष गुरुजी को ही सम्बोधित है। ओम सत्गुरुवे नमः,,,। चन्द पंक्तियाँ देखिए :
बादलों से ढँक जाने पर
सूर्य कभी डूबता नहीं,
चाहे कोई भी हालात हों
सत्य हार सकता नहीं।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत के 100 महान व्यक्तित्व में शामिल
एक साधारण व्यक्ति।