सनातन संस्कृति
सनातन संस्कृति
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गांठ बांध सुन लो इंसानो,
सत्य समृद्ध स्वरूप को जानो।
सनातन संस्कृति सर्वश्रेष्ठ धरा पर,
दिल से तुम मानो न मानो।
दया प्रेम का भाव जो रहता,
कण कण में ईश्वर है बसता ।
पत्थर पत्थर भोले शंकर ,
मन मस्तिष्क में रब भी बसता।
सगुण ब्रह्म स्वरूप अतिसुन्दर,
निर्गुण रुप में वो सबके अंदर।
श्रद्धा प्रेम जब मन जागृत होता,
निराकार ही साकार बन जाता।
वेद पुराण का ज्ञान धरा पर,
सत्य आह्लादित काम यहाँ पर।
करुणा दया अवतार धरा पर,
सत्य अहिंसा संसार यहाँ पर।
राम कृष्ण की पुण्य भूमि है,
नीति धर्म की विश्वजननी है।
बुद्ध को भी हमने पहचाना,
महावीर को भी अपना माना।
सनातन ही है जो सबको अपनाये,
चांद मियां सांई बन जाये।
शिरडी में तुम जाकर देखो,
नफरत मन से हटाकर देखो।
सूफी संत जब निर्गुण गाये,
हिन्दू जन मजार पर जाए।
जो भी जहां में अच्छा पाया,
हमने तो इसे सहर्ष अपनाया।
सहिष्णुता पाठ सारे जग को भाए,
इतिहास ने फिर क्यों ठोकर दिखलाये।
छल रहित व्यवहार ही शत्रु बन जाए,
बुजदिल जान ही लोग हमे भरमाये।
खोज रहा है अब तो भारत ,
वीर धनुर्धर कोई बने महारथ।
अपने संस्कृति की यदि रक्षा है करना,
फिर तोल-मोल और संगठित रहना।
बुद्ध महावीर की पुण्य भूमि में ,
हिंसा-द्वेष का स्थान कहाँ है ।
जो जन हिंसा करे यहाँ पर ,
बुलडोजर लेकर संत खड़ा है।
मौलिक एवं स्वरचित
मनोज कुमार कर्ण