सदा
लगता नहीं है दिल मेरा इस जहाँ में ,
आवाज़ दे पुकार ले अपने आशियाँ में।
दुनिया के दर्द-ओ-गम से जी गया भर,
और बर्दाश्त करने का होंसला नहीं हममें।
किस मकसद से भेजा था आतिशखाने में,
क्यों भेजा।आग लगा आये अपने दामन में।
लाख कोशिश की रूह ने आज़ाद होने की ,
उफ़ !कितनी घुटन है इस टूटे हुए मकान में।
रो -रो कर उम्र गुज़ार दी तेरे इंतज़ार में,
अश्क भी बाकी हैं इन आँखों के पैमाने में।
सब कुछ तो खत्म हो चुका है जिंदगी में,
अब बचा ही क्या है “अनु ” इस सांस में।