सत्य
कविता :
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सत्य
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मोक्ष मार्ग भी मिल जायेगा , पहले मन में प्यार भरें ।
दोनों हाथों प्रेम उलीचें , प्रीत करें मनुहार करें ।।
वह भी क्या मन जिसके अंदर, वात्सल्य की धार न हो ।
तीर्थ वही मन हो जाता है, जिसमें कहीं विकार न हो ।।
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अपनी दिनचर्या को हमने , परखा नहीं कसौटी पर ।
जीवन बीता केवल जोड़े , कंकर-पत्थर मुट्ठी भर ।।
सोचा नहीं कभी भी संचित , यहीं धरा रह जायेगा ।
निश्चित है गगरी टूटेगी, पानी सा बह जायेगा ।।
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प्रश्न कभी तो करें स्वयं से, कौन कहाँ से आये हम ?
मेरा-मेरा करते रहते, लिया जन्म क्या लाये हम ?
किसकी माया है ये सारी , किंचित नहीं विचार किया ।
खाया-पीया सोये-जागे , जीवन व्यर्थ गुजार दिया ।।
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सबसे प्यारा धर्म सनातन त्याग सिखाता जीवन में ।
भाव अहिंसा का भरता है, धर्म हमारा जन-मन में ।।
जियो और जीने दो सबको, धर्म हमारा सिखलाता ।
खोज सत्य की जो करता है, श्रावक वही मोक्ष पाता ।।
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