सत्य मंथन
सत्यमंथन
झूठ की तारीफ और सत्य का उपहास,
प्रचलन बना,.. क्यूँ दोस्तों..?
झूठ का सामना यदि,सत्य से होता यहाँ पर ,
सत्य का दामन नहीं फिर कोई थामता .. क्यूँ दोस्तों..?
झूठ की तारीफ और सत्य का उपहास,
प्रचलन बना,.. क्यूँ दोस्तों..?
पास में है झूठ बैठा,भुजंगों सा फन फैलाये हुए,
पासवाले को पता नहीं क्यूँ ,जहर विषैला दोस्तों..!
सत्य है अंजान बैठा, मुँह छुपाये दूर में ।
सोचता..इस युग में कोई, पूछता नहीं,.. क्यूँ दोस्तों..?
झूठ की तारीफ और सत्य का उपहास,
प्रचलन बना,.. क्यूँ दोस्तों..?
झूठ का सीना देख लो ,गर्व से चौड़ा हो रहा,
सत्य शर्म से नजरें छुपाये, बस पानी पानी हो रहा।
सत्य अलौकिक शिव सा सुंदर, जगत का बीज मंत्र है,
सत्य का फिर हम खोज कर ले,झूठ से मुख मोड़ ले!
झूठ की तारीफ और सत्य का उपहास,
प्रचलन बना,.. क्यूँ दोस्तों..?
सत्य से शिकवा सभी को, झूठ है आँखों का तारा,
झूठ से तो रंगीन महफ़िल,सत्य है वीराना यहाँ पर।
सत्य खातिर हरिश्चन्द्र बिक गए ,
दामन नहीं वो छोड़ा मगर ।
सत्य के घर सिर्फ देर होता,अंधेर नहीं है,.दोस्तों..!
झूठ की तारीफ और सत्य का उपहास,
प्रचलन बना,.. क्यूँ दोस्तों..?
मौलिक एवं स्वरचित
मनोज कुमार कर्ण