सत्य छिपता नहीं…
सत्य छिपता नहीं…
°°°°°°°°°°°°°
सत्य जब छिपता ही नहीं,
सत्य पर पहरा लगाते क्यों तुम ।
मैं तो सत्य बोलुंगा ही ,
चाहे जंजीरों में जकड़ लो तुम ।
झूठ परोस कर जो तुमने ,
इतने दिन राज किए ।
राजमुकुट के लिए ही तो ,
ख्वाहिशों का कत्लेआम किए ।
आज़ादी तो मिली थी पर,
मानसिकता वही गुलामोंवाली ।
किसने रोका था तुम्हें ।
एक समान कानून बनाने की ।
कहने को तो यूँ ही यहाँ, सब बराबर जो,
अनुच्छेद चौदह सजा डाला ।
फिर राजसत्ता सुख लपकने को ,
सबके लिए पृथक कानून बना डाला ।
असत्य यदि रम बस गया तो ,
पथभ्रष्टों का अधिकार बन जाता ।
फिर उसका परिमार्जन करना ,
जग में आसाँ नहीं होता ।
ये जरूरी नहीं कि तुम्हें जो अच्छा लगे,
मैं भी बस वो ही बोलूँ ।
सत्य छिपाने के लिए ,
मैं भी तेरे संग-संग डोलूँ ।
सत्य बहुतों को सदा है खलता ,
फिर भी झूठ का वो प्रश्रय लेता ।
जब धर्म की बातें निकल आए तो ,
चुप रहना भी एक गुनाह होता ।
सत्य, सत्ता स्वार्थ से ऊपर है ,
सत्य का रास्ता मत रोको ।
सत्य तो मैं लिखूंगा ही ,
भले ही अखबार में तुम मत छापो ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १७ /१२ / २०२१
शुक्ल पक्ष , चतुर्दशी , शुक्रवार
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201