सत्य घटना पर आधारित
आहत किया एक घटना ने,
लिखने को मजबूर किया।
वहम था “मलिक” के दिल मे,
उसको तो कोसों दूर किया।।
जन्म दिया था उस माँ ने बेटी को
पर दिल में उसके बहुत मलाल था।
क्या वो माँ किसी की बेटी नही,
फिर ये कैसा अजीब कमाल था।।
खबर मिली एक साथी से,
कि उसने बेटा तो नही पाया।
दोष आया “सुषमा” के सिर
जब उसने सवाल था उठाया।।
कहा फिर उस साथी ने कि यू ,
औरों का आकलन बन्द करो।
तुममे ही है ये सारी इंसानियत,
अपनी सोच पर प्रतिबंध करो।।
बेटी जनकर जो शौक़ मनाए,
वो माँ बनने की हकदार नही।
ना दे भगवान बेटी वहाँ कभी,
जहां बेटी के ही कद्रदान नही।।
हमारे तो कर्म में बेटा है,
लोग इस बारे इठलाते है।।
होगा जिसके कर्म मे जो है,
कहकर वो खूब इतराते हैं।।
बेटे मिलते होंगे उन्हें भाग्य से,
बेटी तो सौभाग्य से मिलती हैं।
ये सुख “मलिक” जाने जिसके,
आंगन में ये कलियां खिलती हैं।।