सत्य की खोज
सत्य खोजने जो चला मैं शास्त्रों में।
सत्य जीतने की शक्ति ढूंढू शस्त्रों में।।
कभी सत्य ढूंढ़ता ये मुख मुद्राओं में।
कभी ढूंढ़ता द्रव्य,मणियों-मुद्राओं में।।
कभी ढूंढ़ता हूं गुरुओं की कक्षाओं में।
तो कभी जीवन की इन परिक्षाओं में।।
पर सत्य पाता खिले जंगली फूलों में।
ये निर्मल बहती धाराओं के मूलों में।।
मासूम बच्चे की मीठी किलकारी में।
एक माता की ममता की किरदारी में।।
सत्य सुनता हूं चिड़िया की चहक में।
सत्य सूंघता हूं मिट्टी सोंधी महक में।।
सत्य देखता हूं सूरज की किरणों में।
पाता सत्य मरीचिका सी हिरणों में।।
सत्य मधु,सत्य पराग,सत्य वह मोती।
खोज इसकी बाहर नही अंदर में होती।।
सत्य खोजने पहले खोजने होती दृष्टि।
वो दृष्टि मिले तो सत्य लगे ये सारी सृष्टि।।
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मौलिक एवं स्वरचित : कविता प्रतियोगिता: रचना संख्या-२४ : मई,२०२४.© जीवनसवारो.