सत्य की खोज
*अनन्त भी खोज रहा है
सत्य है क्या?
क्या वहीं स्वयं सत्य है
जो लटका है अनन्त काल से
एक विराट महाशून्य में
अनन्त बड़ा है या वह महाशून्य
आखिर दोनों को
किस ने घड़ा है?
कौन है वह विराट
जिसका न कोई नाम है
और न ही आकार
न वह संज्ञा है न सर्वनाम
अनुत्तरित है व्याकरण का हर नियम
कैसा होगा वह अनाम?
किसका है यह चमत्कार
किसने रचा है यह विलक्षण संसार?
कौन है सबका सूत्रधार
केसे खोजें,कैसे जाने
कौन है वह सृष्टि का सृजनहार।
किसीने उसे ‘नेति नेति’ कह कर पुकारा
किसी ने उसे बताया अन्तहीन सृष्टियों का भंडारा
कोई खोज रहा उसे भीतर
कोई खोज रहा है बाहर
आता है किसी के हाथ कभी
हर बार छुड़ा कर वह हाथ
भाग लेता है कहीं दूर
क्या हजूर ने बांध रखा है
अनन्त को
भूत, भविष्य और वर्तमान की लड़ी में
या कोई और है कड़ी
धरती, अग्नि,जल, वायु आकाश
अंधेरे के साथ प्रकाश।
विश्लेषण कर रहा है विज्ञान
सुलझाता है एक कड़ी
एक दूसरी छिटक कर
नज़र आती दूर खड़ी
ढूंढ रहा है इन्सान
दे चुका सत्य को
कई कई नाम
क्या कभी आयेगा हाथ
क्या कभी मिलेगा उसे
अंतिम सत्य का साथ? *