सत्य की खोज
खोज रही है सारी दुनिया , प्रेम समर्पण और माया ।
खोज रहा ना सत्य कोई भी , यही सत्य हमने पाया ।।
खोज प्रेम की दुनिया करती, सच्चा प्रेम न करता कोई ।
प्रेम करे जो सच्चे मन से, वैसा दूजा और न होई ।।
सभी चाहते मिले समर्पण, किंतु न कोई निष्ठावान ।
जब निष्ठा से मिले समर्पण, तब जग का होए कल्याण ।।
भाग रहे जो माया के वश , परवश सारे पथिक निराश ।
माया के बंधन हैं ऐसे , जैसे हों नागों के पाश ।।
खोज सत्य की ऐसी , जैसे अमृत सागर मंथन में ।
बादल में जो बूंद सरीखा , रहता है कोमल मन में ।।
सत्य सत्य सब खोज रहे पर, सच्चे मन से मिले न कोए ।
मन से मन का मीत मिले जब, खोज सत्य की पूरी होए ।।
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