सत्य कहाँ ?
देखने सुनने पढ़ने से सत्य खोज ना पाएंगे
ध्यान योग के सप्त चक्रों से सदा सत्य ही पाएंगे
सत्य सनातन , सदा पुरातन वह मंथन के योग्य
सत्य एक , पथ अनेक , पथिक अनेक वह चिंतन के योग्य
जन्म सत्य ऐसे ही मृत्यु भी सत्य
शरीर असत्य और उसकी आत्मा सत्य
जो इस संसार में नाशवान वह असत्य
जो चिरस्थाई इस जग में वह सत्य
जैसे समुद्र जल वाष्पित होकर बादल बन बरसता है
पर्वतों मैदानों से सरिता का सहारा लेकर पुनः समुद्र में मिलता है
यह क्रम निरंतर जारी रहता है
ठीक वैसे ही आत्मा भी परमात्मा से निकलकर जीव में आती है
प्राणी शरीर में कुछ वर्षों काम कर पुनः परमात्मा में मिल जाती है
ओम् यही सत्य है आदि अनंत काल से चल रहा चक्र है
अनंत तक यही क्रम निरंतर चलता रहेगा
मौलिक एवं स्वरचित
ओमप्रकाश भारती ओम्
बालाघाट , मध्यप्रदेश