सत्य और धर्म
किसी भी समाज की परिस्थिति वातावरण के अनुसार संगठित समुदाय के कुछ नियम कानून होते हैं ,इसे समुदाय कहते हैं — ना की धर्म।
धर्म का मूल तो सनातन शाश्वत है।
सत्य प्रेम ,इंसानियत है ।
**दिव्य आलौकिक शक्ति जो इस सृष्टि को चला रही है , क्योंकि यह तो सत्य है कि इस सृष्टि को चलाने वाली कोई अद्वित्य शक्ति है ,जिसे हम सांसाररिक लोग अल्लाह ,परमात्मा ,ईसा मसीहा ,वाहे गुरु ,भगवान इत्यादि ना जाने कितने नामों से पुकारते हैं, अपने इष्ट को याद करतें है।
उस शक्ति के आगे हमारा कोई अस्तित्व नहीं तभी तो हम सांसरिक लोग उस दिव्य शक्ति को खुश करने की कोशिश में लगे रहते हैं …और कहतें है , तुम्हीं हो माता ,पिता तुम्हीं हो , तुम्हीं हो बन्धु ,सखा तुम्ही हो ।
धर्म के नाम पर पाखंड करना तुम ऐसा करोगे तो ऐसा हो जाएगा ऐसा करोगे तो…..क्या कोई भी सच्चा धर्म हमें किसी काम के लिए बाध्य कर सकता है ,नहीं ना … हां धर्म हमें बाध्य करता है कि किसी का बुरा ना करो ना सोचो ….प्रत्येक धर्म का मूल इंसानियत और भाईचारा ही है ..
दूसरी तरफ , परमात्मा के नाम पर धर्म की आड़ लेकर आतंक फैलाना बेगुनाहों मासूमों की हत्या करना,विनाश का कारण बनना , ” आतंकवादी “यह बतायें ,कि क्या कभी हमारे माता पिता यह चाहेंगे या कहेंगे, कि जा बेटा धर्म की आड़ लेकर निर्दोष मासूमों की हत्या कर आतंक फैला ?
नहीं कभी नहीं ना , कोई माता -पिता यह नहीं चाहता की उनकी औलादें गलत काम करें गलत राह पर चले। धर्म के नाम पर आतंक फ़ैलाने वाले लोगों ,आतंक फैलाकर स्वयं अपने धर्म का अपमान ना करो ।
धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वालों को शायद अपने धर्म का सही ज्ञान ही नहीं मिला है , कोई भी धर्म हिंसा की शिक्षा नहीं देता , अहिंसा की ही शिक्षा देता है , प्रत्येक धर्म का मूल परस्पर प्रेम ,और भाईचारा ही है , अशिक्षा सही शिक्षा ना मिलना ,भी आतंकवाद का प्रमुख कारण हो सकता है , क्योंकि वास्तविक शिक्षा प्रगति का मार्ग दिखाती है , ”सभ्यता की सीढ़ियाँ चढ़ाती है ” “,विश्व कौटूम्बकं की बात सिखाती है ,”आतंक को शिक्षा से जोड़ना पड़ेगा क्योंकि आतंक फ़ैलाने वालों को सही ज्ञान सही मार्गदर्शन की आवयश्कता है ,क्योंकि.. हिंसा को हिंसा से कुछ समय के लिए दबाया तो जा सकता है पर ख़त्म नहीं किया जा सकता , सत्य यह कि सही मार्गदर्शन की अति आवश्यक है ।