सत्य और अमृत
लगता है सत्य मुझे, येअमृत का पर्याय है
है इनकी तासीर एक, और एक ही आधार है
जैसे अमृत पीकर कोई, कभी नहीं मरता है
सत्य भी वैंसा ही है, यह कभी नहीं मरता है
सत्यमार्गी चाहे कोई, दुनिया से उठ जाता है
किंतु सत्य उसका अमृत सा, कभी न मरने पाता है
लाख करें कोई सत्य को मेटे, सत्य न मिटने पाता है
नजरें भले चुरा ले कोई, स्वयं से न बच पाता है
सत्य स्वाद तो आम है बंधु, यह कड़वा ही होता है
अमृत जिन्हें पान किया है, उनसे लगता कड़वा होता है
देव और दानव ने, जब समुद्र मंथन करवाया था
मिले चतुर्दश रत्न, उनमें अमृत भी आया था
मिला था अमृत उनको ही, जो सत्य मार्ग पर चलते थे
मानवता की खातिर जो, राह कभी न डिगते थे
रावण भी था महावीर, और विद्या सब पाई थी
अमृत का था कुंड नाभि में, और अथाह पंडिताई थी
न स्वीकारा सत्य को , फिर अमृत में भी कड़बाई थी
इसलिए बंधु उसने, सारी विधा गंबाई थी
अस्तु मुझे लगता है बंधु, सत्य ही अमृत होता है
अविरल सत्य पर चलने वाला, विजित सदा ही होता है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी