सत्यम शिवम सुंदरम
हे केदारेश्वर
देख आकाश लाल बिंदी
लगाए आ रहा है
कभी शर्मा रहा है
बादल के घुंघट में
अपना मुंह छुपा रहा है
हर पुष्प खिल खिला रहा है
पंछी का झुंड चला आ रहा है
गंगा तट पर मंडरा रहा है
हर कर भागीरथ में समा रहा है
हर चरण गंगाजल ला रहा है
उस निर्मल जल से
तू ही तो नहा रहा है
तभी तो तू
सत्यम शिवम सुंदरम कहला रहा है
मधु शाह