सत्ता को भूखे बच्चों की याद दिलाने आया हूं।
सत्ता को भूखे बच्चों की याद दिलाने आया हूं।।
भूख एक नहीं होती है ये तो सौ–सौ होती है,
कुछ भूखों को आज यहां मैं भी बतलाने आया हूं।
सत्ता को भूखे बच्चों की याद दिलाने आया हूं।।
सत्ता को भूखे बच्चों की याद दिलाने आया हूं।।
एक भूख सत्ता की होती जिसके तुम भी हो भूखे,
एक भूख पैसे की होती जिसका ये जग है भूखा।
लेकिन एक भूख रोटी की भी होती है याद रहे,
इसका कोई मोल नहीं है यह भी तुमको याद रहे।
अब इन सब भूखों को एक तराजू में रख कर देखो,
और एक तरफ रोटी की भूख को भी रख कर देखो।
और अगर रोटी का पलड़ा तुमको भारी दिख जाए,
तो सुन लो चाहे पूरे भारत को स्वर्ग बना देना,
लेकिन भूखे बच्चों को भी दो रोटी देते जाना।
लेकिन भूखे बच्चों को भी तो रोटी देते जाना।
कुछ भूखों को आज यहां में भी बतलाने आया हूं,
सत्ता को भूखे बच्चों की याद दिलाने आया हूं।।
चौदह में तुम बोले आतंकी हमले रुकवा देंगे,
हमने सोचा जननायक को हम भी एक मौका देंगे,
लेकिन पांच साल में नायक सारी दुनिया घूम गए,
घूम–घूम कर नायक जी वादे भी सारे भूल गए।
अभी समय बाकी है थोड़ा तुम कुछ ऐसा कर जाओ,
जनता याद करे तुमको सच्चे जननायक बन जाओ।
देखो याद रहे कोई बच्चा ना भूखा मर जाए,
भूख मिटा दो भूखों को बस दो रोटी देते जाओ।
माना हर बच्चे को तुम अच्छी शिक्षा दिलवा दोगे,
लेकिन याद रहे उनको फिर रोजगार दिलवा जाओ।
याद रहे भारत की संसद भ्रष्टाचार से मुक्त रहें,
और सभी सरकारी दफ्तर भी दलाल से मुक्त रहें।
देखो फिर अपना भारत भी अखंड शक्ति से युक्त रहे,
और तिरंगों में लिपटी लाशों से भी ये मुक्त रहे।
कब तक देखें लाश तिरंगे में लिपटी हम बतलाओ,
अभी समय बाकी है थोड़ा तुम कुछ ऐसा कर जाओ,
जनता याद करे तुमको सच्चे जननायक बन जाओ।।
जनता याद करे तुमको सच्चे जननायक बन जाओ।।
कुछ भूखों को आज यहां मैं भी बतलाने आया हूं,
सत्ता को भूखे बच्चों की याद दिलाने आया हूं।।
सत्ता को भूखे बच्चों की याद दिलाने आया हूं।।
लेखक/कवि
अभिषेक सोनी “अभिमुख”