सत्ताविहीन
कुछ रचनाएं हो
बहुत कुछ घटे तभी तो होगी.
मिला है सभी को
संभाल पाओगे
तभी तो अपनी होगी.
गुजार दिया हर मंजर देखते देखते
कोई विरोध विद्रोह हो तभी तो क्रांति होगी
बिन किये बिन खोजे कैसे मिले
जय जयकार में तो सत्कार नहीं होती.
बने हो नम्बरदार
बिन जानकारी के तो वो भी नहीं होती.
सजी है थाली पत्थर पर झुके हो
बिन बोध के तो ये आदत भी नहीं छुटती.
सेवक को माथे चढ़ाया है.
सेलेब्रिटी उसे बनाया है.
मालिकियत अब अपनी कैसे होगी.
सारथी अब तुम नहीं,
जबतलक लगाम खुद के हाथ नहीं होगी.
सहो अब अत्याचार
कैसे करोगे प्रतिकार.
जब सत्ता देश की नहीं.
एक व्यक्ति/एक विचारधारा की होगी.
वैद्य महेन्द्र सिंह हंस