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20 Apr 2022 · 1 min read

सती

थी दक्ष की सुता सती,त्रिलोकी को निहारती,
स्वीकारा शिव को पति,उचारे शिवम-शिवम।

माने न पिता की बात, समझाती उसे मात,
बीत जाए सारी रात, रहते नैन नम-नम।

शिव ले बारात आये,भूत-प्रेत साथ लाये,
बाघंबर धार आये, डमरू बाजे डम-डम।

देख शमशान योगी,कहे सब उसे जोगी,
बेटी न प्रसन्न होगी,भेजें न संग हम-हम।

सती हंसे मन मन,डरते थे जन-जन,
वार बैठी तन-मन,हदय मची धम-धम।

मन चाहा वर पाया,सती मन भर आया,
भोले की है ये तो माया,है नहीं भरम-भरम।

यज्ञ का था अवसर,न बुलाए शिव पर,
शिवा आई मात घर,हो खड़ी सहम-सहम।

देखा स्वामी अपमान,जाग उठा स्वाभिमान,
कर दिए प्राण दान,यज्ञ में भसम-भसम।

स्वरचित-
गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार उत्तराखंड
20अप्रैल2022

1 Like · 2 Comments · 194 Views
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